Saturday, August 15, 2020

काम का दबाव और आत्महत्या.( आलेख )

आधुनिक युग की आपाधापी भरे जीवन में काम का दबाव कमो-बेस सभी जनों पर रहता है।चाहे वे गृहिणियाँ हो या कार्यालय या अन्य स्थान पर कार्यरत महिला- पुरुष।चाहे कृषक हों या मजदूर । शिक्षक हों या लेखक और समीक्षक । या फिर नेता -अभिनेता।काम तो सभी को करना पड़ता है। कोई इसे साधारण क्रियाकलाप समझ व्यवहारिक रूप में अपना कर्तव्य समझकर हौसला के साथ करता है,कोई इसे बोझ और दबाव समझ नाहक मानसिक तनाव और अवसाद का शिकार होता है। कर्म ही जीव की सच्ची साधना है।कर्म बिना जीवन बेकार है।जो व्यक्ति काम से जी चुराता है वह जीवन पथ पर आगे बढ़ नहीं पाता।स्वयं का और दूसरे का भी नुकसान करता है ।कर्म से मुँह मोड़कर आप कर्म से छुटकारा नहीं पा सकते ।हर जीव अपनी क्षमता और जरूरत के अनुसार कर्म करते हैं। पशु-पक्षि एवं कीट-पतंग भी बिना कर्म किए नहीं जीते।उन्हें भी अपनी आवश्यकता के लिए,अावास एवं भोजन के लिए काम करना ही पड़ता है।हाँ अस्वस्थता या किसी प्रकार की परेशानी- लाचारी के कारण काम करने में असमर्थ हैं तो माफी या अवकाश माँगकर बच सकते हैं ना कि जान गवाँकर।काम के दबाव के कारण आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देना किसी दृष्टिकोण से सही नहीं है ।आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।आत्महत्या करने वाले अपने पीछे अपने हितैषियों एवं परिजनोंं के लिए विकट परिस्थिकियाँ तथा अनेकानेक प्रश्नों को उत्पन्न कर दुःख और संकट में डाल देते हैं।यदि काम का दबाव रहने पर काम को छोड़ कर बैठ जाते तो परिवार की देखभाल तो करते।सच कहें तो हत्या पाप है तो आत्महत्या महापाप है।
          सुजाता प्रिय'समृद्धि'
                 स्वरचित

No comments:

Post a Comment