Thursday, August 27, 2020

उन्मुक्त भाव

उन्मुक्त धरा के सहवासी हों,
                         मन में भाव जगाइए।
हम सब मिलकर इस धरती को,
                          सुंदर सहज बनाइए।
हम सब मिलकर............

हम उन्मुक्त तभी रहेंगे,
                जब भाव हमारे हों उन्मुक्त।
सभी जनों का क्लेश हरें हम,
                   भेद-भाव से होकर मुक्त।
वैर-द्वेष और कलुष रहित हो,
                         ऐसा महल सजाइए।
हम सब मिलकर.......

कभी किसी को दुःख ना दें,
                 किसी का ना अपमान करें।
उन्मुक्त भाव से सब प्राणि का,
                   सदा ही हम सम्मान करें।
प्रेम,दया सब वासी में हो,
                           ऐसा नगर बसाइए।
हम सब मिलकर...........

निर्भय हो हर बाला घूमें,
                     हर बालक निष्पापी हो।
ममता की मूरत हर नारी हो,
                     हर नर अब प्रतापी हो।
प्रेम परस्पर सब लोगों में हो ,
                           ऐसी रीत चलाइए।
हम सब मिलकर...........

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 31 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी सादर नमन दीदी जी! मेरी रचना

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  3. मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।

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  4. बहुत खूब सखी सुजाता जी | मन के भाव इतने मुक्त और सौहार्द युक्त हों तो रामराज्य ही आ जाए जीवन में |

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  5. अगर हम सभी मन में ऐसे संकल्प लें तो शायद राम राज्य आ जाए।सुंदर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार सखी।

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  6. Replies
    1. जी सादर धन्यबाद एवं आभार सर।

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  7. "ममता की मूरत हर नारी हो, हर नर अब प्रतापी हो।" ... प्रेरक परिकल्पना .. पर मंदिर की मूरत से लोगबाग को अवकाश मिले तब ना ...

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  8. जी सादर धन्यबाद भाई।आभार

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