Tuesday, September 2, 2025

प्रणाम (दोहे )

जिनके मन में प्रेम  है,करते वे प्रणाम। 
गुरुजनों को करें,प्रणाम सुबह-शाम।।

प्रणाम सिखाता लोग को,अनुशासन का भाव 
प्रणाम वही जन करते,जिनका सरल स्वभाव। ।
बडों के लिए  जिनके मन में ,हो आदर का भाव ।

प्रणाम देता शीतलता,मिटाता मन का कशोभ।
सम्मान देते लोग को,रखें न मन में लोभ।।

नम्र करते हैं सदा,झुककर सदा प्रणाम। 

शीश नवागुरु जनों को ,सुबह शाम। 
प्रणाम मिटाता है सदा,मन के सारे क्रोध।।
क्मा
क्षमा-भाव आता सदा,मिटता मन प्रतिशोध। ।
प्रणाम टालता है सदा,अंतर का अहंकार। 
प्रणाम वे जन करते,जिनका श्रेष्ठ  विचार। 
प्रणम्य भाव  से दिखता मानव का व्यवहार। 
मन में लाता नम्रता,सभी श्रेष्ठ संस्कार। ।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, September 1, 2025

सुबह का भूला

रक्षाबंधन का दिन। रोली अक्षत फल-मिठाइयों के साथ सुंदर राखी रख सुनीता थाली सजा रही है। पड़ोसी सुशील बाबू के द्वारा अपने लिए छोटी बहना का संबोधन और आंखों में स्नेह युक्त प्यार देख सुनीता का मन आत्म-विभोर हो उठता। लेकिन कहीं-न-कहीं उनका चेहरा जाना-पहचाना लगना उसे विचलित कर देता।आखिर कहांँ देखा है उन्हें ? 
बातों-बातों में उनसे ही कह डाला  -"भैया ! ऐसा लगता है कि मैंने कहीं आपको देखा है !" लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि वह उसे जानते हैं ।खैर जो हो एक बडे-भाई का प्यार और आशीर्वाद पाकर ही वह धन्य थी। अपने भाई तो उससे छोटे ही थे। उतनी दूर से रक्षाबंधन पर्व में आ भी नहीं सके।
     तभी ममेरे भाई निखिल ने कॉल कर बताया कि तुम्हारी राखी मुझे मिल गई।।कभी वहांँ आउँगा, तो तुम्हारे लिए उपहार लेकर आउँगा। वह ठुनकती हुई बोली -आप मुझे हमेशा यही कहकर तो ठगते हैं । कभी आते तो है नहीं।"
     उन्होंने कहा- "आऊंँगा ! हो सकता है, जल्दी आ जाऊँ। अब तो मेरा दोस्त भी तुम्हारे शहर में रहने लगा । उसके बेटे का विवाह होने वाला है तीन महीने बाद ।"
"कौन दोस्त ?" 
"एक सुशील नाम का दोस्त मेरी शादी में अपनी मांँ के साथ आया हुआ था ।"
नाम सुनते ही सुशील बाबू का चेहरा उसके आंखों के सामने घूम गया। इनके बेटे का विवाह भी तीन महीने बाद है।अब उसे समझ आया की सुशील बाबू का चेहरा उसे जाना-पहचाना क्यों लगता था ।आज से पच्चीस साल पुर्व  उसके ममेरे भाई की शादी में भैया का यह दोस्त अपनी मांँ के साथ आया हुआ था। भैया ने जब उसका परिचय करवाया तो उसने बड़े भाई के दोस्त के नाते उसे नमस्कार किया। परंतु जब-तक वह शादी मे रही, सुशील अजीब-सी प्यास भरी नजरों से उसे देखता रहता।  कभी -भी उन्हें भैया कह कर संबोधित कर लिया तो उसके चेहरे पर नागवारी के भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर हुआ दिखता था ।
 शादी खत्म होने पर वह अपने घर आ गई। लेकिन सुशील की नजरों का मैलापन याद कर उसका मन कसैला हो जाता। फिर उसकी भी शादी हो गई और समय के साथ वह उन कड़वाहटों को भूल गई ।
आज वही सुशील उसे भाई का प्यार उड़ेल रहा है। अब वह उसके उन भावों को याद रखें या आज के ? जिन भावों की आकांक्षा वह पच्चीस साल पूर्व सुशील बाबू से करती थी, वह आज प्राप्त हो रहा है।अंत में उसने यह निर्णय किया कि "अतीत की कड़वाहटों को भूल हमें वर्तमान की मृदुलता में जीना चाहिए।" लेकिन उनके उन व्यवहारों को माफ कर देना क्या न्याय-संगत होगा ?  दिल ने कहा -"जाने दो कम- से -कम अब तो समझ आया ।"
     फिर वह सुधीर बाबू को राखी बांँधने के लिए थाल सजाने लगी।
                      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'