Friday, August 29, 2025

मां जगदम्बे गीत

आस धरी अईली दुअरिया केबङिया खोला हे मैया।
केबङिया खोला हे मैया,तनी एने फेरा नजरिया,
केबङिया खोला हे मैया.....
गंगाजल स्नान करन को,भरी-भरी लैलूं गगरिया,
केबङिया......
सेनुर-टिकुली,बाली-लहठी,लैली लाली चुनरिया,
केबङिया.............
बेली-चमेली,उङहुल कलिया, तोड़ी-तोडी लैलूं डलिया
केबङिया..........
गङी-छुहाङा, दाखिल मुनक्का,भरी-भरी लैलूं थरिया
केबङिया..........
धूप-दीप-कर्पूर जलाऊं,सभे मिली सांझ के बेरिया, 
केबङिया,..............
मैया अइहा हमर दुअरिया,अपराध से बाढ़ूं डगरिया,
केबङिया...............
मैया अपन भक्त  समझ के,मन से दिया आशीषिया 
केबङिया.............

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 25, 2025

मैया शेरोंवाली

मैया शेरावाली मुझको तेरा प्यार चाहिए ।
प्यार चाहिए मांँ दुलार चाहिए ।
मैया शेरावाली .............
कब से खड़ी हूंँ द्वार तुम्हारे,नयन उठा कर देखो।
हाथ में लाई खाली झोली,हूंँ खड़ी फैला कर देखो।
भर दो झोली मेरी आशीष हजार चाहिए ।
मैया शेरावाली..........
 ले मनोरथ मन में खड़ी हूंँ, माँ कामना पुरी कर दो।
 काज हमारा आज के दिन माँ,है बड़ी जरूरी कर दो।
 सारे दुखड़े हरो माँ,मुझे बाहर चाहिए ।
मैया शेरावाली .........
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जय मां अंम्बे

अम्बे मेरा जहां में,बस आपका सहारा।
तेरे बिना है माता ,दिखता नहीं किनारा।।
मेरा काम आज अटका,उसे पूर्ण कर   दो माता।
मेरी बिगङी तुम बना दो,हे पहाङों वाली माता।
जीवन  मेरा संवारो,देकर  मुझे सहारा।
अम्बे मेरा जहां में..............
मां मुझको आज थामों,मैं लङखङा रही हूं।
जो पथ सुगम था मेरा, उसको भूला रही हूं।
सत्पथ मुझे दिखाओ,मैं दास हूं तुम्हारा.
अम्बे मेरा...........
मां देखो  मेरी कश्ती,मझधार में खङी  है।
सब राह भूल बैठी, तुफान में अङी है।
पतवार बहकी जाती,बङी तेज जल की धारा.
अम्बे मेरा .........

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 19, 2025

मेरी मटकी से

कान्हा माखन न चुरा मेरी मटकी से।
मटकी से छीके लटकी से।
कान्हा माखन न  .....
कह दूंगी यशोदा मैया से जाकर,
तू तो बडा है माखन  चोर। 
छीके से उतारकर माखन ,
खाया मेरी मटकी फोड़।
दधी खाया तूने छोटी लुटकी से।
कान्हा माखन न ..........
तूमने भी खाया बलराम को खिलाया,
बाल सखा संग राधा को खिलाया,
किया तुमने लड़ाई  मेरी छुटकी से।
कान्हा माखन न...........
ताली बजाकर बाल सखा संग, 
हमें चिढ़ाकर गाया गीत। 
कहा-तूमने मुझको है हराया,
तेरे साथियों की हो गई  जीत।
तूने ताल मिलाया दे दे चुटकी से।
कान्हा माखन न .............
              सुजाता प्रिय  'समृद्धि'

मधुमास मनोहर

आया सखी मधुमास मनोहर 
फूलों से सज गया बाग-फुलवारी,
पेड़ सजा है पलाश-गुलमोहर ।
कोयल गाती पंचम सुर में,
भँवरे छेड़े तान मनोहर ।
नहीं सुहाता बिस्तर रजाई,
अंग नहीं दुशाला और दोहर।
गाते सभी मिल फाग के गाने।
ऐसे लगे सब गा रहे सोहर।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

पावन मधुमास

लेकर संग में खुशियां खास।
आया है पावन मधुमास।
आया है........ 
दिशा-दशा वासंती छाई।
बागों में कलियां मुस्काई।
झूम-झूम नव कोमल पत्ते,
हर्षित हो करता परिहास।
आया है............
फूल खिले हैं फुलवारी में।
गमलों और छोटी क्यारी में।
बागों में छाई है हरियाली,
वन उपवन खिल गया पलास।
आया है..............
भौंरा गाये, कोयलिया कूके।
बुझे दिलों में जीवन फूंके।
उड़ी तितलियांं उसकी चिड़िया,
सबके मन को आया रास।
आया है..................
सब जीवों का मन हर्षित है।
सरस-सलिल जीवन पुलकित है।
पवन के कोमल झोंके ले आया,
खुशहाली का देने आस।
आया है...................
रंग-रंगीला आया फाग।
छेड़ जोशीला सुंदर राग।
जन-जीवन को देने आया,
सौगातों की झोली पास।
आया है........
आने वाला है नववर्ष।
सबके मन में भरने हर्ष।
संग में आँचल भरकर लाया,
उत्साह, उमंग और उल्लास।
आया है................
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'


श्रीराम जन्म

जन्म लिए रघुराई सखी री दशरथ भवन में।
अंगना में बाजे बधाई सखी री दशरथ भवन में।
कौन मांँ के राम,कौन माँ भरत,कोन मातु के लखन -शत्रुधन भाई सखी री दशरथ भवन में।
कौशिल्या माँ के राम कैकेई मां के भरत,
सुमित्रा मां के लखन -शत्रुधन भाई सखी री-
दशरथ भवन में ।
के रे लुटावे अनधन सोनमा,
केरे लुकास हाथ कंगना सखी री,
दशरथ भवन में..........

लेकर आंक -धथूरा हार

लेकर आंक -धथूरा हार।
चलो सभी शंकर के द्वार।
शंकर हैं औढरदानी।
दुनिया उनकी दिवानी।
मांग लो वर मन मानी।
वर देंगे हमको दानी।
शंकर जो करें विचार।
हो जाएगा बेड़ा पार।
बाबा के दर जाएँगे।
गंगा जल चढ़ाएंगे।
गीत -भजन हम गाएँगे।
बाबा को मनाएंगे।

भोला बाबा हैं दिगम्बर

भोले बाबा है दिगंबर,तन पर ओढ़े हैं बाघाम्बर
इनके वस में धरती अम्बर सभी जानते।
इनके मस्तक पर है चंदा,जटे से बहती गंगा,
इनका मन है बड़ा चंगा सभी जानते।
भोले बाबा हैं.........
जो बाबा के शरण में आता, झोली भर कर जाता।
जो बाबा का ध्यान लगाता, मन चाहा वर पाता।
बाबा मेरे औढरदानी ये तो बहुत बड़े वर दानी 
वर देते हैं मनमानी सभी जानते।
भोले बाबा हैं दिगम्बर........

घन

आसमान में घन है।
हरस रहा मन है।
जैसे मिलता धन है।
खन-खन खनकता।

छा रहा है अंधकार, 
गरजता बारम्बार, 
जैसे उद्देश्य पुकार, 
धम-धम धमकता।

दामिनी भी है संग  में,
आज बड़  उमंग में,
तङित सोने रंग में,
चम-चम  चमकता। 

खुश आज  वर्षा रानी।
बरसा रही है पानी,
बन आज  महारानी,
 छम-छम छमकता।

सुजाता प्रिय  समृद्धि

पत्थर के गुरु लेकर दृढ़ विश्वास हृदय में,पहुंँचा एकलव्य द्रोण के पास। नतमस्तक हो बोला-गुरुवर !धनुर्विद्या की ले आया हूंँ आस।।कृपया चलाना धनुष सिखा दें,मुझको आप प्रसाद स्वरूप।छोटे-छोटे कुछ नियम बता दें,मुझ छोटे-बालक अनुरूप।पूछा-गुरुवर ने,हे अनुगामी! तुम किस कुल के बालक हो।कौन तुम्हारे मात-पिता हैं ,बोल तुम किसके पालक हो।बोला-एकलव्य,हाथ जोड़,जंगल की कुटिया में रहता हूँ।छोटे कुल का बालक हूंँ, रूखी-सूखी खाकर पलता हूंँ।बोले गुरुवर- मैं तो केवल,राजकुमारों को देता हूंँ शिक्षा। छोटे कुल के बालक हो तो,मत माँगो तुम मुझसे भिक्षा।।विदीर्ण हृदय से दृढ़ संकल्प लें,एकलव्य आ अपने घर।प्रतिमा, गुरु की एक बनाया,काट-तरास कर एक पत्थर।नित्य चरण-रज शीष लगता,हाथ जोड़कर मूर्ति के पास। स्वनिर्मित धनुष-वाण ले,दृढ़ मन से नित्य करता अभ्यास।एक सुबह जब कर रहा था,अभ्यास वह तीर चलाने का।एक स्वान आ लगा भौंकने,किया प्रयास बड़ा मनाने का।बहुत उसे पुचकार मनाया,लेकिन बात न माना वह कुत्ता। जितना उसको शांत कराता,उतनी-ही जोर से था भूंकता। भटक रहा था ध्यान एकलव्य का,केंद्रित न कर पाता मन। सहन न कर पाया अपराध, तिरंदाजी के अभ्यास विरुद्ध ।कुशलता से तीर चला,कर दिया स्वान का कंठ अवरुद्ध।*****************************************नगर -गाँव से दूर अरण्य में,जाकर गुरुवार द्रोणा चार्य। राजकुमारों को धनुष सीखने का,कर रहे थे पुनीत कार्य। भांँति-भाँति के गुर्र वे गहराई से,शिष्यों को सिखला रहे थे। बारीकी से तीरंदाजी के कुछ,करतब उन्हें बतला रहे थे। रोमांचित हो सब सीख रहे थे,तिरंदाजी का यह रूप नया।नई रीति से और नई नीति से नए नियम व स्वरूप नया ।इसी समय कहीं से भगता,उनका कुत्ता आ गया सिर टेक।सभी शिष्य और गुरु ने देखा,उसके कंठ में समाये थे तीर अनेक।गुरु-शिष्य सब हुए अचंभित, तीरंदाज की कुशलता पर।रक्त का एक भी बूंद न बहा था,स्तब्ध थे इस सफलता पर।बस उसका कंठ अवरुद्ध था,ताकि वह भौंक नहीं पाए। अभ्यास करने वाले को,ध्यान भटका कर रोक नहीं पाए। चल पड़े गुरुवर शिष्यों को ले,ढूंढने उस धनुर्धारी को। जिसने उनको दिखलाया था,तीरंदाजी की कलाकारी को।*******************************************तन्मयता से अभ्यास वह,कर रहा था तीर चलाने का ।अलग-अलग अंदाज में ,निशाना वह वहांँ लगाने का।ध्यान भंग कर गुरुवर ने पूछा,कौन तुम्हारे गुरु है तात। कौन तुमको तीर चलाने की,यह विद्या देते हैं सौगात।कहा एकलव्य ने विनीत भाव से,मैंने गुरु आपको माना। प्रत्यक्ष नहीं तो,मूर्त रूप दे,प्रसाद-स्वरूप हर गुण जाना।वृक्ष के नीचे रखी उनकी प्रतिमा,उन्हें इशारे से दिखाया।नतमस्तक हो प्रणाम कर, उठा चरण रज शीश लगाया।आपकी ही मूर्ति में शीश नवाकर नित्य अभ्यास करता हूंँ।ज्ञान कोष भरता हूँ।बोले गुरुवर-हे शिष्य! गुरु स्वरूप प्रतिमा तूने बनाया।गुरु मानकर मुझको मेरी हर विधा को तूमने जाना ।धनुर्विद्या में तुम सफल हुए अब गुरु दक्षिणा की बारी है। अब मांगता हूँ जो दान मैं, तेरे लिए नहीं देना वह भारी है।खुश होकर बोला एकलव्य, गुरुवर अधोभाग हमारा है।गुरुदक्षिणा देने का अवसर आया यह सौभाग्य हमारा है।मुझ निर्धन बालक से गुरुवर आज आप जो मांगेंगे। यदि वह मेरे पास हुआ तो आप पल भर में पाएंगे। बोले गुरुवर हे वत्स! वह चीज तुम्हारे पास है।उस छोटी-सी चीज दक्षिणा में लेने की आस है।अपने दाहिने हाथ का अंगूठा आज मुझे दो दान में।झुका मस्तक एकलव्य गुरु के चरणों मेंउसने जो प्रण ठाना था।दिया वचन जो गुरुवर को उसको आज निभाना था।झट खडग ले काट अंगुष्ठा गुरु के चरणों में चढ़ा दिया।बढ़ा दिया।

Monday, August 18, 2025

भोला बाबा हैं दिगम्बर

भोले बाबा हैं दिगम्बर,तन पे ओढें हैं बाघम्बर, 
इनके बस में धरती-अम्बर सभी जानते।
इनके मस्तक पर है चंदा,जाए से बहती गंगा,
इनका मन है बङा चंगा,सभी जानते।

जो बाबा की शरण में आता,झोली भरकर जाता।
जो बाबा का नाम है लेता,मनचाहा वर पाता।
बाबा मेरे औढर दानी,ये तो बहुत बड़े  वरदानी।
वर देते हैं वरदानी, सभी जानते। 

भोला मेरे जग में नामी,हैं भोले अन्तर्यामी। 
ब्रम्हांड समूचा इनके वश में,ये तीन लोक के स्वामी।
डम-डम डमरू रोज बजाते,भूतो को संग नचाते,
भक्तों के कष्ट मिटाते, सभी जानते।

भांग-धथुरा खानेवाले,बाबा भोले-भाले।
सब देवों के देव हैं भोला,मन के बड़े निराले।
इनके गले सर्प की माला,इनके कर में त्रिशूल भाला,
भोला पीते विष का प्याला, सभी जानते।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 17, 2025

महाबली हनुमान (हरि गीतिका छंद )

महाबली हनुमान का नित ध्यान सब मिल कीजिए।
उनके चरण में शीश रख आशीष भी कुछ लीजिए।।
निज भक्त के संताप को फल में मिटाते हैं प्रभु ।
दुख- वेदना हरकर हृदय में सुख-चैन लाते हैं प्रभु ।।
माँ अंजनी के पुत्र हैं बल बुद्धि -ज्ञान अपार है।
पवन पिता सम हैं बली,महिमा अपरंपार है ।
शरण इनके जो भी जाता,हर लेते उसकी कुमति।
ज्ञान-बुद्धि-विवेक देते ,भर देते उनमें सुमति।
श्रीराम के सेवक अनूपम दुनिया कहती भक्त हैं।
करते सदा ही आज्ञा पालन, भक्ति में अनुरक्त हैं।।
अतुल तेज प्रताप है,बल बुद्धि अपरम्पार है।
दुख की घड़ी जो शरण आता करता सदा उपकार हैं।।
हैं भक्त वत्सल दीनबंधु सबपर दया करते सदा।
सब कष्ट हर निज भक्त के संताप को हरते सदा।
भूत-प्रेत पिशाच इनका नाम सुनकर काँपते।
पाताल,धरती और अम्बर,एक पग में नापते।
 श्री राम के दरवार में हैं दूत बनकर बिराजते।
                                              राज्य।।
पवनपुत्र हनुमान का गुणगान सब मिल गाइए।

निज कीर्ति से दरवार हैं  दूत बन कर सोभते ।
श्रीराम की सेवा करें वे,सब लोग के मन मोहते
                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

महाबली हनुमान (हरि गीतिका छंद )

महाबली हनुमान का नित ध्यान सब मिल कीजिए।
उनके चरण में शीश रख आशीष भी कुछ लीजिए।।
निज भक्त के संताप को फल में मिटाते हैं प्रभु ।
दुख- वेदना हरकर हृदय में सुख-चैन लाते हैं प्रभु ।।
माँ अंजनी के पुत्र हैं बल बुद्धि -ज्ञान अपार है।
पवन पिता सम हैं बली,महिमा अपरंपार है ।
शरण इनके जो भी जाता,हर लेते उसकी कुमति।
ज्ञान-बुद्धि-विवेक देते ,भर देते उनमें सुमति।
 श्री राम के दरवार में हैं दूत बनकर बिराजते।
                                              राज्य।।

निज कीर्ति से दर वारियों के मन कर सोहर ।
श्रीराम की सेवा करते सब लोग के मन मोहते
                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, August 16, 2025

राधा (देव घनाक्षरी)

पहन   चुनरी   चोली,
राधा सखियों से बोली,
मत  कर   तू  ठिठोली ,
खटक-खटक-खटक्के ।

                                मधुबन     में     मुरारी ,
                                बजाते   बांसुरी  प्यारी,
                                जा की पायलिया भारी,
                                झनक - झनक -झनके।

कर   मैया   से   बहाना,
माखन -मिश्री   लेजाना,
कान्हा को मुझे खिलाना,
पकड़ -  पकड़    मटके।

                                  चल   तू   मेरे  संग  में,
                                  आज   मेरे   उमंग   में,
                                   रंग  जा   मेरे   रंग   में,
                                   पहर - पहर  -  झटके।

                                    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, August 15, 2025

माखन चोर

सारे जगत में मच गया शोर
यशोदा तेरा लाला है माखन चोर।
यशोदा तेरा.......
सांवली सूरत,मोहनी मूरत ,
दिखता भोला, पर है चितचोर,
यशोदा तेरा लाला........
हाथ में कंगना,पांव पैजनियां,
माथे सोभता है पंख मोर 
यशोदा तेरा लाला.......
घर-घर से खाता है माखन चुराकर,
खा कर मटकी देता है फोड़ 
यशोदा तेरा लाला........
कदम पेड़ चढ़कर बांसुरी बजाता,
 जिसका धुन मन में मारे हिलोर,
 यशोदा तेरा लाला.........
पनिहारिन की फोड़े सिर गगरी 
राधा से करता है बलजोर,
यशोदा तेरा लाला............
यशोमती तेरा कान्हा है बड़ा नटखट,
जिस पर चलता नहीं तेरा जोर
यशोदा तेरा लाला.......
सुजाता प्रिय समृद्धि 

शिव शंकर बसहा वाला

पीकर भांग का प्याला, घूमने चले बसहा वाला।
झूम-झूम झूम-झूम झूम -झूमकर।
पीकर भांग.....
कमंडल में है भांग धतूरा,और आंक का फूल।
डम डम डमरू बजा रहे हैं,चमक रहा त्रिशूल ।
ओढ़ कर बाघ की छाला घूमने चले बसहा वाला।
झूम-झूम झूम-झूम झूम-झूम कर.....
पीकर भांग की प्याला......
धरती घूमे अंबर घूमे और घूमे पाताल ।
तीन लोक में घूम-घूमकर देखें दुनिया का हाल ।
पहनकर नाग की माला घूमने चले बसहा वाला।
पीकर भांग की प्याला....
सब जीवों पर दयाभाव से किया जो दृष्टिपात ।
बिन पूछे हीअंतर्यामी समझे दिल की बात।
संकट सब की हर डाला,घूमने चले......
पीकर भांग की प्याला.....
 सब लोगों के रोग हरे और हरे शोक-संताप। 
धन-दौलत से परिपूर्ण कर,हर लिए सबके पाप।
उद्धार पापियों का कर डाला।
घूमने चले बसहा वाला।
झूम-झूम झूम-झूम झूम-झूम झूम-झूम कर
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि '

जय महाकाल

भोला तेरे कमण्डल में.एक मुट्ठी धान है।
उसी धान से तुम भगवन पालते जहान है।
भोला तेरे कमण्डल में............
भोला तेरे मस्तक पर चमक रहा चांद है।
उसी चाँद से रोशन,धरा -आसमान है।
भोला तेरे कमण्डल में...........
भोला तेरे जटे में गंगा की धार है।
उसी जलधार से भोले बुझाते सबकी प्यास हैं।
भोला तेरे कमण्डल में .............
भोला जी के गले में, लिपट रहा नाग है,
उस नाग को देख भाग जाता काल है।
भोला तेरे कमण्डल में...................
भोला जी के अंग में बाघ की छाल है,
छाल पहन घूमता,अजब तेरी चाल है।
भोला तेरे कमण्डल में...................
भोला तेरे हाथ में, डमरू त्रिशूल है,
जिसकी झंकार से प्राणि दुःख जाता भूल है।
भोला तेरे कमण्डल में ................. ‍।
भोला तेरे संग में भूत-बैताल है।
इसलिए जग में तुम,कहाते महाकाल है।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'






जय भोलेनाथ

हर भोले, बम बम भोले ,
महिमा जिनकी अपार ऐसे शिव-शंकर भोले दानी ।
सब पाप हरे, संताप हरे,
सबको देते हैं तार,ऐसे शिव शंकर भोले दानी।
सर्पकी माला, बाघ की छाला,पहन चले त्रिपुरारी ।
भाल पर चंदा,जटे में गंगा महिमा जिनकी न्यारी।
हाँ-हाँ जी महिमा जिनकी न्यारी।
नैया बोले,आकर भोले,लगाएंगे उस पार ।
ऐसे शिव शंकर ..........
उन्होंने छोड़ा, हाथी-घोड़ा, करते वृषभ सवारी।
टूटी मड़ैया, फूस की छैया, फिर भी दानी भारी।
हाँ,हाँ शिव फिर भी दानी भारी।
शरण जो आता, सब कुछ पाता धन-वैभव अपार,
ऐसे शिव -शंकर दानी भारी।
डमरू डम डम,नाचे छम छम,पीकर भंग मतवाला।
इनका न कोई पता ठिकाना सबके हैं रखवाला।
जो मान करें,जो ध्यान करे,शिव करते उसका उद्धार 
ऐसे शिव शंकर दानी भारी।
                   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 14, 2025

जय श्री कृष्ण ( कृपाण घनाक्षरी)

दयामय तारो- तारो।
     केशव  हमें  उबारो।
         जीवन आज सवारो।
             विकल है  अंतर्मन ।

              मैं तो हूंँ तेरी दासी ।
       तेरे दर्शन की प्यासी।
    बैठी हूंँ आज उदासी।
तड़पता    मेरा  मन।

मन के क्लेश मिटा दो।
    संकट  से  तू  बचा दो।
        बेड़ा को पार लगा दो। 
           बिखर  न  जाए  धन।

             सुनो अब अंतर्यामी।
         तुम्हारी मैं अनुगामी ।
    तुमहो सब के स्वामी।
बचाओ अब  जीवन।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जय गणपति (विजया घनाक्षरी)

गणपति  को  नमन।
    कार्तिकेय को नमन।
        मांँ पार्वती को नमन।
            गौरी पति को नमन।

हरिविष्णु  को नमन।
    मात लक्ष्मी को नमन।
        सरस्वती  को   नमन।
            चक्र - ब्रह्म को नमन ।

रामचंद्र   को   नमन।
    सीता माता को नमन।
        लखन  जी  को नमन।
            हनुमान    को   नमन ।

बालकृष्ण को नमन।
    राधा प्यारी को नमन।
        गोप- गोपी को नमन।
            भक्त- लोग को नमन ।
           
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जीवन संदेश

वर्तमान में जी लो भाई बीते पल न याद करो
भावी दिन की चिंता में तुम समय नहीं बर्वाद करो।
माना बचपन के दिन थे प्यारे बहुत मौज हम करते थे।़ खेल -कूद कर समय बिताते खूब चौकड़ी भरते थे। बचपन बीता आई जवानी इसको तुम आवाद करो।
भावी दिन की चिंता में...............
देख जवानी लेकर आया बल-बुद्धि-विश्वास नया।
बाजू में ताकत,मन में हिम्मत,दिल में है उल्लास नया।
पराक्रम ओ हिम्मत से तुम
भावी दिन की चिंता में................
वृद्धावस्था से मत घबराओ इसमें भी है मौज बड़े ।कहानियां सुनने आएंगे नाती-पोतो की फौज बड़ी ।
उनके संग में बचपन जी लों जवानी को भी याद करो। भावी दिन की चिंता में,
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 13, 2025

शिव -पार्वती (चौपाई)

बैठी शिव संग पार्वती माँ। हरती सब की मूढ़ मति माँ।।
हाथ जोड़कर भक्त खड़े हैं। नतमस्तक ले आस खड़े हैं।।
हे शिव शंकर हे बम भोला। आज आइए मेरे टोला ।।
जग प्राणी के कष्ट मिटाने ।जग के सब संताप हटाने ।।
त्राहिमाम करता जग सारा। चहुं ओर फैला अँधियारा।।
हर-हर-हर भोले त्रिपुरारी। सब संकट तुम हरो हमारी ।।
दया करो तुम हे नगेश्वर। हे शिव शंकर हे परमेश्वर।।
 आई जग में विपदा भारी। त्रस्त है जिससे दुनिया सारी।।
पीकर तूने विष का प्याला । सारे जग का बन रखवाला।।
आज नाथ तू हमें बचा लो ।सारे दुख को दूरभाग दो ।
क्षमा करो अपराध हमारा। भूल-चूक जो भी हो सारा।।
 शिव बोले तुम सुनो भवानी।सारे जग की तुम हो रानी।।
 सुनो सुनो हे शैल किशोरी ।तुम तो मन की हो अति भोरी।
चल भक्तों की शुद्ध-बुद्ध लेने। सुख औ समृद्धि उनको देने।।
 यह जग है मेरी ही माया। हमने रची जीव की काया।
हमको इनकी रक्षा करना। इनके सब कष्टों को हरना।।

शिव दोहे

शिव देवों के देव हैं, चरणों में प्रणाम ।
हर हर बम-बम बोलकर,जपते जाओ नाम ।।

सबके ये संकट हरे,सबके पालनहार।
जग वालों पर वे सदा,करते हैं उपकार।।

मस्तक पर है चंद्रमा,जटे गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े बदन,गले सर्प की हार।।

एक हाथ त्रिशूल है,कमंडल दूजे हाथ ।
नतमस्तक होकर सदा,भक्त झुकाते माथ।।

मंदिर में विराजते,माँ गौरी के संग। 
सारा जग हैं घूमते, चढ़ बसहा के अंग।।

खाते भांग सदा चबा,लगाते हैं विभूत।
हैं कार्तिक और गणपति, दोनों इनके पूत।।

आदि औ अंत रहित हैं,महिमा अपरंपार।
 सृष्टि रचैया आप  हैं ,मान रहा संसार ।।

परमेश्वर व परमपिता,पर हित परमानंद।
आपके चरण में प्रभो,सबको है आनंद ।।

आपकी भक्ति की सदा,मन में इच्छा प्रबल।
जग की रक्षा कीजिए, जीव हैं सभी विकल।।

 डमरू आप बजाइए, नाद उठे सब ओर।
सब जन हर्षित हो यहांँ, नाच उठे मन मोर ।।

हे शंकर कैलाशपति, हे गौरी के नाथ।
हमारे गृह पधारिए, कार्तिक-गणपति साथ।।
                       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 12, 2025

चोर

बच्चों की उपस्थिति लेते ही कक्षाचार्य जी ने सभी बच्चों को अपने गृहकार्य की पुस्तिका जमा करने को कहा। रिंकू अपनी पुस्तिका के साथ एक सुंदर कलम  लेकर आगे बढ़ा ।सभी बच्चे चोर-चोर के नारे लगने लगे।
     रिंकू बड़ी मासूमियत से सहमते हुए कहा -आचार्य जी! आपकी कलम मैंने चोरी नहीं की। 
     उसका सहपाठी संजीव ने कहा तुमने चोरी की थी ।तभी तों डर से कल विद्यालय नहीं आया। कल आचार्य जी ने बताया की उनकी कलम गायब है।तो हम सब समझ गए कि उसे तुमने ही गायब किया है।
       नहीं मेरे दोस्त ! मैंने कलम चोरी नहीं की आचार्य जी ने पुस्तिका जांँच के बाद मेरी पुस्तिका में  स्वयं कलम छोड़ दी थी ।और,मैं कोई भय से विद्यालय नहीं आया। बल्कि कल मेरी तबीयत बिगड़ गई थी। शाम में कुछ  ठीक लगा तब गृह-कार्य करने गया। उनकी खुली कलम मेरी पुस्तिका में रखी थी।
 मैंने मांँ को बताया तो मांँ ने कहा- इस कलम को तुम आदर के साथ आचार्य जी को दे दो। "किसी व्यक्ति का सामान गलती से भी आ जाए ,तो उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए ।" इसलिए मैं इसे आज लेते आया ।
  कक्षाचार्य जी ने झट कुर्ते की जेब में हाथ डाला और उसका ढक्कन निकालकर  कलम में लगाया । फिर मुस्कुराते हुए कहा- चोर रिंकू नहीं बल्कि भुलक्कड़ मैं स्वयं हूँ। क्योंकि अपनी कलम कहीं भी छोड़ देता हूंँ । सचमुच यह कलम मैं इसकी पुस्तिका में छोड़ दिया था और ढूंढते रहा तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारी मांँ को भी बहुत धन्यवाद देता हूंँ , जिन्होंने अपने बेटे को इतने अच्छे संस्कार दिए हैं कि "किसी का सामान गलती भी आ जाए तो उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए।"
                           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

दोस्ती का फर्ज

चिड़िया औ चींटी में भाई दोस्ती थी गहरी।
एक-दूजे की रक्षा करते दोनों बनकर प्रहरी।
एक बार नदी में जा गिरी थी जब चींटी रानी।
नदी में बहुत तेज धार से, बह  रहा था पानी।
व्याकुल हो गयी चिड़िया चीटी को डूबते देख।
झट उठा एक बड़ा-सा पत्ता दी पानी में फेंक।
पत्ते पर बैठ चीटी रानी ने अपनी जान बचाई।
चिड़िया के उपकार से वह फूली नहीं समाई।
एक दिन की बात है, जंगल में शिकारी आया।
तीर चढ़ा धनुष पर चिड़िया  निशाना लगाया।
यह देख चीटी रानी अब मन- ही- मन घबराई ।
झट से जा शिकारी के पांव में, वह काट खाई।
तिलमिला उठा शिकारी,औ गया निशाना चूक।
तीर की आवाज सुन चिड़िया गई फुर्र से उड़।
                    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 11, 2025

पत्थर के गुरु

पत्थर के गुरु 

लेकर दृढ़ विश्वास हृदय में,पहुंँचा एकलव्य द्रोण के पास। नतमस्तक हो बोला-गुरुवर !धनुर्विद्या की ले आया हूंँ आस।।
कृपया चलाना धनुष सिखा दें,मुझको आप प्रसाद स्वरूप।
छोटे-छोटे कुछ नियम बता दें,मुझ छोटे-बालक अनुरूप।
पूछा-गुरुवर ने,हे अनुगामी! तुम किस कुल के बालक हो।
कौन तुम्हारे मात-पिता हैं ,बोल तुम किसके पालक हो।
बोला-एकलव्य,हाथ जोड़,जंगल की कुटिया में रहता हूँ।
छोटे कुल का बालक हूंँ, रूखी-सूखी खाकर पलता हूंँ।
बोले गुरुवर- मैं तो केवल,राजकुमारों को देता हूंँ शिक्षा। छोटे कुल के बालक हो तो,मत माँगो तुम मुझसे भिक्षा।।
विदीर्ण हृदय से दृढ़ संकल्प लें,एकलव्य आ अपने घर।प्रतिमा, गुरु की एक बनाया,काट-तरास कर एक पत्थर।
नित्य चरण-रज शीष लगता,हाथ जोड़कर मूर्ति के पास। स्वनिर्मित धनुष-वाण ले,दृढ़ मन से नित्य करता अभ्यास।
एक सुबह जब कर रहा था,अभ्यास वह तीर चलाने का।
एक स्वान आ लगा भौंकने,किया प्रयास बड़ा मनाने का।
बहुत उसे पुचकार मनाया,लेकिन बात न माना वह कुत्ता। जितना उसको शांत कराता,उतनी-ही जोर से था भूंकता। भटक रहा था ध्यान एकलव्य का,केंद्रित न कर पाता मन। 
सहन न कर पाया अपराध, तिरंदाजी के अभ्यास विरुद्ध ।
कुशलता से तीर चला,कर दिया स्वान का कंठ अवरुद्ध।
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नगर -गाँव से दूर अरण्य में,जाकर गुरुवार द्रोणा चार्य। राजकुमारों को धनुष सीखने का,कर रहे थे पुनीत कार्य। भांँति-भाँति के गुर्र वे गहराई से,शिष्यों को सिखला रहे थे। 
बारीकी से तीरंदाजी के कुछ,करतब उन्हें बतला रहे थे। रोमांचित हो सब सीख रहे थे,तिरंदाजी का यह रूप नया।
नई रीति से और नई नीति से नए नियम व स्वरूप नया ।
इसी समय कहीं से भगता,उनका कुत्ता आ गया सिर टेक।
सभी शिष्य और गुरु ने देखा,उसके कंठ में समाये थे तीर अनेक।
गुरु-शिष्य सब हुए अचंभित, तीरंदाज की कुशलता पर।
रक्त का एक भी बूंद न बहा था,स्तब्ध थे इस सफलता पर।
बस उसका कंठ अवरुद्ध था,ताकि वह भौंक नहीं पाए। 
अभ्यास करने वाले को,ध्यान भटका कर रोक नहीं पाए। चल पड़े गुरुवर शिष्यों को ले,ढूंढने उस धनुर्धारी को। जिसने उनको दिखलाया था,तीरंदाजी की  कलाकारी को।
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तन्मयता से अभ्यास वह,कर रहा था तीर चलाने का ।
अलग-अलग अंदाज में ,निशाना वह वहांँ लगाने का।
ध्यान भंग कर गुरुवर ने पूछा,कौन तुम्हारे गुरु है तात। कौन तुमको तीर चलाने की,यह  विद्या देते हैं सौगात।
कहा एकलव्य ने विनीत भाव से,मैंने गुरु आपको माना। प्रत्यक्ष नहीं तो,मूर्त रूप दे,प्रसाद-स्वरूप हर गुण जाना।
वृक्ष के नीचे रखी उनकी प्रतिमा,उन्हें इशारे से दिखाया।
नतमस्तक हो प्रणाम कर, उठा चरण रज शीश लगाया।
आपकी ही मूर्ति में शीश नवाकर नित्य अभ्यास करता हूंँ।
ज्ञान कोष भरता हूँ।

बोले गुरुवर-हे शिष्य! गुरु स्वरूप प्रतिमा तूने बनाया।
गुरु मानकर मुझको मेरी हर विधा को तूमने जाना ।
धनुर्विद्या में तुम सफल हुए अब गुरु दक्षिणा की बारी है।
अब मांगता हूँ जो दान मैं, तेरे लिए नहीं देना वह भारी है।

Friday, August 8, 2025

सच्चा मित्र

हरी फसल देख हिरण ललचाता।
    खेतों में जाकर जी भरकर खाता।
        एक दिन किसान ने जाल बिछाया।
            लालची हिरण को उसमें फंसाया।

फंसकर जाल में हिरण पछताया।
    जोर - जोर से वह खूब चिल्लाया।
        कौआ  मित्र  तब उड़ कर  आया।
           किसान से बचने का उपाय बताया।

सुबह किसान जब खेत  में आया।
    हिरण को मरा वह जाल में पाया।
        क्योंकि,कौए को चोंच मारते देखा।
            निकाल जाल  से हिरण को फेंका।

सांस रोका था, हिरण अब  जागा।
    झट उठ -कर जान बचा वह भागा।
       ऐसे कौए ने हिरण की जान बचाई। 
           इस  तरह मित्रता थी उसने निभाई। 
                       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'


कौआ बदला रूप

एक कौआ ने मोर पंख पाया।
    उठा अपने पंखों में फंसाया।
        मोर के पास गया बन भोला।
            मैं भी मोर हूं हँसकर  बोला।

तुम तो हो कौआ बोला मोर। 
    मेरे पंखों के तुम  तो हो चोर।
          मेरा पंख चुरा तूने है लगाया।
              मोर बन निकट मेरे तू आया।

सुनकर कौआ हुआ उदास।
    चला  कौआ, कौए के पास। 
        कौए बोले सुनो-सुनो ऐ मोर। 
            क्यों आये हो तुम  मेरी ओर। 

कौआ मोर का पंख हटाया।
    रूप  बदलने पर पछताया।
        लालच में  न रूप  बदलता। 
            जाति में पहचान तो मिलता।

                      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 7, 2025

चिड़ियों की आपबीती

कटोरा में जल भरा हुआ है,आशिकी थोड़ा तो पीने।
जल विधि हम कृष्णा है आशिकी थोड़ा तो जीने।

उड़ती-फिरती  हम अंबर में बिपाशित मन से होकर व्याकुल।
दूर-दूर तक जल न दिखता, शुष्क मन से होकर आकुल।
कंठ को कुछ ठंढक पहुंचाएंँ आ सखी थोड़ा तो पीले।

कहांँ मिलेगा अब हमको पानी विलुप्त हुए अब ताल-तलैया।
नदिया बन गई सकरी नाली-सी तट-बंध पर बन गई मड़ैया।
छत पर यह थाल समंदर जैसा,आ सखी थोड़ा तो पीले।

नीड हमारा अभी दूर है नगर गांँव से दूर अरण्य में ।
अब तो सपना हुआ हमारा,नीड बनाना वन-उपवन में। वृक्ष बिना यह बस्ती सूनी आ सखी थोड़ा तो पीलें।

अब तो मानव जन गीत न गाते,आ री चिरैया मेरे आंँगन । मुन्नी-मुन्ना का मन बहलाओ, चहक-चहक कर गीत रिझाबन।
किसी को हमारी फिक्र नहीं है आ सखी थोड़ा तो जी लें।

अब तो मानव भूल गए हैं,छिटना छत पर चावल के दाने।
पशु-पक्षियों पर मोह घटा है,व्यस्त हुआ है अब उनका जीवन।
किसी को हम पर मोह नहीं है ,आ सखी थोड़ा तो जी लें।

पहले घर के रोशनदान में,हम अपना थे नीड़ बनाते।
मुन्ने-मुनिया के गिरे जूठन को,उठा चोंच से हम थे खाते। रोशनदान खिलौने से सजा है,आ सखी थोड़ा तो जी लें                               सुजाता प्रिया 'समृद्धि'

Tuesday, August 5, 2025

आनंद वन

आनन्द वन में हिंसक पशुओं का प्रवेश  वर्जित  था।इसलिए अन्य सभी पशु-पक्षी वहाँ  बड़े आनन्द से रहते थे।परंतु पास  के वन का एक भेड़िया  छुपाते-छुपाते वहाँ  प्रवेश कर जाता और अवसर  देख छोट-छोटे पशुओं को चट कर  जाता।इस कारण  सभी  छोटे-बड़े  पशुओं मे हड़कंप मच गया ।सभी पशुओं को अपनी जान बचाने की चिंता सताने लगी ।सभी अपनी गुफाओं एवं मांद में छुपे रहते ।तभी एक चतुर खरगोश ने सभी छोटे पशु-पक्षियों की एक सभा आयोजित की,और भेड़िया को पकड़ कर मारने की एक योजना बनाई ।दूसरे दिन योजनानुसार भेड़िया के आने वाले रास्ते में बड़ा-गड्ढा बनाया और वहांँ उसके ऊपर सूखी पत्तियां बिछा दी जिससे किसी को यह संदेह नहीं हो कि वहांँ गड्ढा है । फिर शाम ढलने से पहले पूरे वन में घूम-घूम कर यह घोषणा करने लगे कि - "डम डमा डम, डम डमा डम बंदरजी महाराज ! गिलहरी की शादी है,गीत गाने चलिए ।
           इस प्रकार वह वन के सभी पशुओं को बुलाया उधर भेड़िया उनकी घोषणा सुन फूला न‌ समाया ।उसने सोचा आज अच्छा अवसर है शादी में गीत गाने के लिए जाने वाले कुछ पशुओं को मार कर अथवा घायल कर दूं तो कुछ दिनों के लिए भोजन की व्यवस्था हो जाएगी।
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 नियत समय पर एक घने वृक्ष के नीचे कुछ पशु बैठकर अपनी-अपनी राग अलापने लगे। कुछ पशु टीले पर  उछल-उछल कर नाच रहे थे ।भेड़िया आव देखा- ताव। चुपके-चुपके छुपते-छुपाते हुए टिले की ओर बढा,  फिर उनके द्वारा खोदकर बनाए गए गड्ढे में गिरकर चिल्लाने लगा।उसे गड्ढे में गिरता देख कर आनंदवन के पशु एक साथ उस-पर टूट पड़े उसे नोच-खसोट कर इतना मारा कि वह चलने फिरने से भी लाचारहो गया उसकी यह दुर्दशा देख जंगल के अन्य बड़े-बड़े पशुओं ने भी आनंद वन की ओर आंँख उठाकर देखने की कोशिश नहीं की। अब आनंद वन के सभी पशु पक्षी फिर से आनंद के साथ रहने लगे ।
                   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 4, 2025

उम्मीद का आकाश कभी झुकता नहीं

उम्मीद का आकाश  कभी झुकता नहीं है ।
हौसला हो मन  में तो कदम रुकता नहीं है।
दुनिया टिकी है उम्मीद पर,उम्मीद न छोड़ो।
उम्मीद ले कर्म करने से तू मुख नहीं मोड़ो।
हौसला  है मन में तो मेहनत न हो बेकार। ।
इच्छा की छेनी पर मेहनत की हथौङी मार।
मन  में रख विश्वास, पर्वत  में बनाओ राह।
पर्वत  को ढाओ धूल सम,मन में रख चाह।
मानव  तुम्हारे मन में यदि इच्छा रहे प्रबल। 
तो हर कठिन काम भी, हो जाता है सरल ।
                      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 3, 2025

जय मां दुर्गा

अपने भक्तों की विनती स्वीकार कर लो।
द्वार  तेरे  खड़ी हूं मां प्यार कर लो।
बेली-चमेली का माला बनाया,
उ उङहुल फूल  लगा है सिंगार कर लो.
द्वार तेरे ..............
दाख-मुनक्का का भोग लगाया,
संग नारियल-छुहाङा आहार कर लो।
द्वार  तेरे ...............
कंचन  थाली कपूर  की बाती,
आरती उतारें स्वीकार कर लो।
द्वार तेरे................
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

माता रानी की विनती

माता रानी की विनती 

करुँ नमन मैं बारंबार,कष्ट से दो मांँ उबार।
भँवर में नैना मेरी,कर दे माँ उस पार।।
निश दिन करुँ पुकार,हृदय से करुँ गुहार,
भंवर में नैया मेरी......
जीवन नैया तुम ही खेवैया,
अब तो पार करो हे मैया,
सारे जगत की तुम रखबैया,
तुझ बिन कोई नहीं खेबैया।
मुझ पर भी कर उपकार ।
दुनियाँ मेरी दे संवार,
भंवर में नैया मेरी......
बिगड़ी मेरी बना दो हे माता !
हे जग-जननी हे जगमाता।
द्वार तुम्हारे जो भी है आता।
पूर्ण मनोरथ सब सुख पाता।
आई हूंँ मैं तेरे द्वार, 
मुझको भी दे अपना प्यार ।
भंवर में नैया मेरी......
मांँ मैं तेरे चरणों की दासी।
आज मिटा दो सभी उदासी।
तेरी दया की मैं अभिलाषी।
तेरी कृपा की हूँ प्रत्याशी।
कर रही मैं पुकार,मेरी भी सुनो गुहार।
भँवर में नैया मेरी.......
आई हूँ मैं तेरे द्वार.......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'