Thursday, December 19, 2024

लालच बुरी बलाई

लालच बुरी बलाई

चार मित्र एक बार शाम को, 
टहल रहे थे पथ पर। 
वहाँ उन्होंने जाते देखा, 
एक सेठ को रथ पर। 

रथ से पथ पर एक पोटली, 
गिर पड़ी वहाँ फिसलकर। 
रथ बढ गया आगे तब, 
मित्रों ने झट उछल कर। 

उठा लिया उस पोटली को, 
फिर देखा उसको खोल। 
उस पोटली में थे बंधे, 
रतन बड़े अनमोल। 

देख रतन को उनके मन में, 
लालच ने आ घेरा।
बड़े प्यार से उन मित्रों ने, 
हाथ रतन पर फेरा। 

झट से बेच दिए रत्नों को, 
जौहरी के घर जाकर। 
बाट लिए पैसे आपस में, 
उन चारो ने बराबर। 

इतने में आ घेरा उन्हें, 
सिपाहियों के दल ने। 
कह चोर गिरफ्तार किया, 
लगे हाथ वे मलने। 

यदि पोटली रत्न भरी वह, 
सेठ को वापस देते। 
अपनी सज्जनता पर कुछ,
इनाम भी पा लेते। 

पर लालच में आकर समाज में, 
चोर बने वे भाई। 
इसीलिए तो कहते हैं कि,
लालच बुरी बलाई। 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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