चपला बोली (चौपाई छंद )
नभ में चपला चमक रही है।
कड़-कड़,कड़-कड़ कड़क रही है।।
बादल को ललकार रही है।
बारम्बार पुकार रही है।।
कहती बादल अब तुम बरसो।
नहीं करो तुम कल औ परसों।।
अब न करो तुम आना-कानी।
चला नहीं अपनी मनमानी।।
घनघोर घटा को बरसाओ।
तपती वसुधा को हर्षाओ।।
आ तुझको मैं राह दिखा दूँ।
कहाँ बरसना यह समझा दूँ।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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