जन्माष्टमी (मन हरण घनाक्षरी)
अंधेरी,आधी रात में,
भादों के बरसात में,
शुभ दिन जन्माष्टमी,
नाच रहे जन हैं।
आये कान्हा गोद में,
झूमों मंगल - मोद में,
वसुदेव-देवकी का,
पुलकित मन है।
विष्णु के अवतार हैं,
करते बेड़ा पार हैं,
मथुरा निवासियों का,
खुश चितवन है।
कान्हा सबको तारते,
संताप से उबारते,
दीन-हीन सेवकों को,
देते धन - जन हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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