Friday, November 15, 2024

एकता में बल

एकता में बल

एक दिन एक शिकारी आया। 
जंगल में वह जाल  बिछाया। 
उसके ऊपर वह दाने  डाला। 
छिपकर बैठा  बन रखवाला। 
                   कबूतरों का झुण्ड तब आया। 
                  दाने देखकर  सब ललचाया।
                   कबूतरों का  राजा तब बोला। 
                   बेकार तुम सबका मन डोला। 
जंगल में अन्न कहाँ से आया। 
यहाँ किसी का छल है छाया। 
पर कबूतरों ने  बात न मानी। 
दाना खाये सब  कर नादानी। 
                  बिछे  जाल में  वे फँस चुके थे। 
                  अपराध -भाव से सिर झुके थे। 
                  कपोत राज ने फिर मुंँह खोला। 
                 बड़े प्यार से उन सबको बोला। 
एक साथ  मिल  उड़ चलें हम। 
जाल को लेकर भाग चलें हम। 
मानकर कबूतर राजा की बात। 
पहुंँच गये मुषक दादा के पास। 
                  कपोत  राज ने  कहा- मूषक से। 
                  छुड़ा दो सबको  जाल कुतर के। 
                  मुषक कुतर कर जाल को काटा। 
                  उड़ गए कबूतर कर टाटा-टाटा । 
                        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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