विश्वासघात
सुंदरवन में जामुन पेड़ पर रहता था एक बंदर।
नीचे एक नदी थी जिसमें,राहत था एक मगर।
दोनों गहरे मित्र थे,घुलमिल कर बातें करते थे।
दोनों मिल जामुन खाते,नदी का पानी पीते थे।
एक दिन बहला बंदर को,पीठ पर मगर बैठाया।
कहा मगरनी ने आज है,दावत पर तुझे बुलाया।
पहुंचे जब वे बीच नदी,मगर ने बंदर को बताया।
मैं तो दोस्ती का वास्ता दे,छल से तुझे ले आया।
कोई दावत नहीं भाई! न मगरनी ने तुझे बुलाया।
तेरा कलेजा मीठा होगा,तूने जामुन बहुत खाया।
इसीलिए तुझे मार कर मैं,कलेजा तेरा खाऊंगा।
बहुत दिनों पर मन की,हसरत आज मिटाऊंगा।
कहा मगर से झट बंदर ने,काबू रखकर भय पर।
मैंने तो कलेजे को सुखने,दिया है पेड़ के ऊपर।
जल्दी से मुझको पेड़ तक,वापस तुम पहुंचा दो।
उठा पेड़ से अपना कलेजा,झट मैं तुम्हें थमा दूं।
पेड़ तक उसको ले आया,मगर ने बातों में आकर।
झट से पेड़ पर चढ़ बैठा,बंदर ने छलांग लगाकर।
ऊंँची डाली पर चढ़कर बोला-सुन रे कपटी मित्र।
कलेजा पेड़ पर सुखता ,यह बात नहीं है विचित्र।
जो जन अपने ही मित्रों से, विश्वासघात करते हैं।
कोई उसका मित्र न होता,सभी जन दूर रहते हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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