Tuesday, December 14, 2021

जाड़े की धूप ( विधाता छंद )



जाड़े की धूप (विधाता छंद)

कड़क की ठंड है लेकिन,
             गुलाबी धूप भी फैली।
आओ बैठें आंगन में,
                 चाहे गात हो मैली।
रजाई छोड़ हम आये,
            लगती धूप अब प्यारी।
किरणें फैली अम्बर में,
            कितनी लग रही न्यारी।
हमारी कपकपी को हर,
              भरती ताजगी तन में।
शरद से मिलती है राहत,
             स्फूर्ति भरती है मन में।
ठंड से हम ठिठूरते हैं,
            तो भाती धूप जाड़े की।
नहीं विकल्प हैं इसके,
              हीटर ए.सी.भाड़े की।
करें नित धूप का सेवन,
           तो तन मजबूत हो जाए।
उत्तम औषधि है यह,
           चिकित्सक भी न दे पाए।
विटामिन डी हमें देती,
              नरम यह धूप है प्यारी।
जब दिन है यहां ढलता,
               लगती और भी प्यारी।             
भगाती कांस और सर्दी,
                 व्याधि सारे हर लेती।
कर निरोग काया को,
                   निर्विकार कर देती।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित, मौलिक

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 16 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जाड़े की धूप में अभी बैठ क्र आये .... अच्छा वर्णन

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  3. जाड़े की धूप का बहुत ही सुन्दर वर्णन।बेहतरीन रचना।

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  4. जाड़े की धूप में बैठकर आपकी कविता का आनन्द ले रही हूँ.. एक एक पंक्ति महसूस हो रही है।
    सादर

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  5. बहुत खूबसूरत रचना

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