Sunday, December 12, 2021

माता शबरी के जूठे बेर

माता शबरी के जूठे बेर

माता सीता की खोज में राम-लक्ष्मण पंपा सरोवर (जो उस काल में किष्किंधा के नाम से प्रसिद्ध था) की ओर बढ़े। वहां मतंग वन  में एक बूढ़ी माता अपने आंचल से मार्ग की सफाई करती मिली।
लक्ष्मण ने पुछा-माते ! तुम पथ को अपने आंचल से क्यों बुहार रही हो ?
 बृद्धा ने पीछे मुड़े बिना भक्ति-भाव से उत्तर दिया -इस पथ से भगवान राम पधारेंगे,इसलिए।और वह निकट रखी फूलों से भरी टोकरी से फूल लेकर पथ में बिछाने लगी। फूलों से सजे राहों में दिव्य चरणों को बढ़ते देख नजरें उठाकर राम-लक्ष्मण  दोनों भाई के दर्शन पा भाव विह्वल हो दोनों के चरण-स्पर्श करती हुई प्रेम अश्रुपूरित नयनों से निहारती हुई बोली-प्रभु !आप यहां आएंगे, यह मुझे मेरे गुरुदेव महर्षि मतंग मुनि ने बचपन में ही बताया था।तब से मैं मन में विश्वास लेकर प्रतिक्षा कर रही हूं।हे अंतर्यामी भगवन ! आपने मेरे हृदय के विश्वास को सत्य कर दिखाया।आपके दर्शन पाकर आज मेरा जीवन धन्य हो गया।
वह राम -लक्ष्मण को अागे मार्ग में ले जाते हुए बताया कि मेरा नाम शबरी है और मैं शुद्र जाति की भीलनी हूं।बचपन से ही आपकी अनन्य भक्त हूं। वह बेर केे वृक्षों के बीच स्थित अपनी छोटी-सी कुटिया में कुश के आसन पर राम-लक्ष्मण दोनों भाई को आदर पूर्वक बैठाकर सत्कार करती हुई उनके चरण पखारे।फिर वृक्ष से तोड़कर बेर एकत्र किए ।फिर, उन्हें चख-चख कर खट्टे बेरों को फेंक दिया और मीठे बेरों को थाली में सजाया और प्रेम पूर्वक दोनों भाइयों के आगे परोस दिया।उसके निश्छल प्रेम से अभिभूत हो भगवन राम ने मुग्ध हो उन्हें निहारा और बड़े प्रेम से उन जूठे बेरों का भोजन किया। उनके अनुज लक्ष्मण जी भी उनका अनुकरण करते हुए बेर उठाते और मुंह में डालने के बजाए अपने मस्तक के ऊपर से पीछे फेंक देते। उनकी यह क्रिया बूढ़ी शबरी की नजरों से छिपी न रहीं।तब उसे यह अहसास हुआ कि चखने के क्रम में मैंने सारे बेर जूठे कर दिये इसलिए लक्ष्मण ने बेर ग्रहण नहीं किया।
उसके मन की बात को अन्तर्यामी भगवन ने ताड़ लिया और शबरी को ज्ञात कराते हुए बताया कि भाई लक्ष्मण ने प्रण किया है कि "जब तक अपनी भाभी को ढूंढ कर नहीं लाऊंगा तब तक भोजन का एक कण तक मुंह में नहीं लूंगा।" राम भक्तिन मातु शबरी ने लक्ष्मण द्वारा फेंके गए बेरों को अमृत होने का वरदान दिया और राम को ऋष्यमूक पर्वत स्थित किष्किंधा के राजा सुग्रीव के बारे में बताते हुए उनसे मदद लेने के लिए कहा।
कहा 
जाता है कि लक्ष्मण द्वारा फेंके गए शबरी के वे जूठे बेर ही जाकर द्रोण पर्वत पर गिरकर संजीवनी बूटी के रूप में जन्म लिया और लब मेघनाद के अत्यंत तेजोमय बाण के प्रहार से लक्ष्मण जी मुर्छित हुए तो सुषेण वैद्य द्वारा बताई गई उसी संजीवनी बूटी से लक्ष्मण की चिर मुर्छा भंग हुई थी। इसलिए कहते हैं कि श्रद्धा से भगवान की भक्ति करने से भगवान की कृपा शक्ति भी भक्तों 
में आ जाती हैं।उसी भक्ति के प्रभाव से माता शबरी के झूठे बेर भी अमृत बन गये।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              स्वरचित, मौलिक

1 comment:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-12-2021 ) को 'आग सेंकता सरजू दादा, दिन में छाया अँधियारा' (चर्चा अंक 4277 )' पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

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    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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