Saturday, December 18, 2021

सांच को आंच क्या (लघुकथा )

सांच को आंच क्या

धीरु नामक एक मूर्तिकार था। पत्थरों को तराश कर अनेक प्रकार की मूर्तियां एवं खिलौने बनाता और बाजार में बेचा करता। उसकी मूर्तियां काफी खूबसूरत और आकर्षक होती थी, इसलिए उसे उन मूर्तियों के अच्छे दाम मिल जाते।रोज की इस आमदनी से वह अपने परिवार का भरण-पोषण भलि प्रकार से कर लेता था।इस प्रकार उसके दिन सुख पूर्वक बीत रहे थे।
    बीरु नामक उसका एक दोस्त था।वह मोमबत्तियों एवं लाभ के सामानों का व्यापार करता था।उसे धीरू के सुख-शांति से बड़ी ईर्ष्या होती उसने धीरू को नीचा दिखाने की योजना बनाई।उसने धीरू के मुख्य ग्राहकों में यह अफवाह फैला दी कि -धीरू द्वारा बनाई गई अधिकांश मूर्तियां लाह और मोम के बने होते हैं। किन्तु वह उन्हें कीमती पत्थरों द्वारा निर्मित बताकर मनचाही कीमतें वसूल लेता है।ऐसी बातें सुन धीरू  के सभी ग्राहक भड़क उठे।और खरीदी गई मूर्तियां वापस करने लगे।धीरू ने उन्हें बहुत समझाया कि वे उन मूर्तियों की जहां चाहे जांच करवा ले। लेकिन वे उसकी बात मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।वे धीरू से मूर्तियों के लिए दिये गये पैसे वापस मांगने लगे।अब बेचारा धीरु पैसे कहां से वापस करता।सारे पैसे तो उन्होंने परिवार की जरूरतों एवं मूर्तियां निर्माण के लिए पत्थरों की खरीद पर खर्च कर चुका था।
बढ़ते -बढ़ते बात ग्राम पंचायत तक पहुंच गई। गांव के मुखिया ने कहा- यदि धीरु द्वारा बेची गईं मूर्तियां नकली हुयी तो धीरु अपने ग्राहकों को मूर्तियों की कीमत के दोगुना पैसे वापस करने होंगे।धीरु से ईर्ष्या करने वाले लोग से झूम उठे। किन्तु धीरू ने धैर्य पूर्वक मुखिया का यह फैसला स्वीकार कर लिया।
दूसरे दिन पंचायत सभा में एक भट्ठी जलाई गई। उसमें धीरु द्वारा बेची गई मूर्तियों को तपा कर देखा गया।धीरु सच्चा था,उसकी मूर्तियां असली थीं। उन्हें भट्ठी की आग भला किस प्रकार पिघला सकती थी।सारी मूर्तियां सती- सीता की तरह अग्नि-परीक्षा देकर   निकल गई। ग्राहकों और जलने वालों के मुंह बन गये और धीरु प्रसन्न हो मुस्कुरा उठा।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                  स्वरचित, मौलिक

2 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(19-12-21) को "खुद की ही जलधार बनो तुम" (चर्चा अंक4283)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. बहुत सुंदर बोध कथा!--ब्रजेंद्रनाथ

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