Wednesday, December 29, 2021

अंग्रेजियत



अंग्रेजियत

अंग्रेजों को भगा दिए पर,
अंग्रेजियत भगा न पाये हम।
संस्कृत,हिन्दी,मगही भूले, 
अंग्रेजी भुला न पाये हम।

नमस्कार-प्रणाम करना भूले,
करते हम हाय और हैलो।
दोस्त-सखी सब फ्रेंड बने हैं,
सहपाठी बन गये क्लासफेलो।

चार अक्षर अंग्रेजी बोलकर,
अपनी शान दिखाते हम।
मम्मी-डैडी कह मां-पिता का,
झूठा मान बढ़ाते हम।

चाचा-चाची के रिश्ते को,
तनिक निभा न पातेे हम।
अंकल-अंटी कह अंग्रेजी के,
दलदल में मुफ्त गिराते हम।

भाई को ब्रदर हम कहते,
बहना को कहते हैं सिस्टर।
श्रीमान-श्रीमती कहना छोड़,
कहने लगे मिसेज-मिस्टर।

पत्नी को गृहिणी न कहकर,
कहते हैं हम हाउस वाइफ।
रोते पति हसबैंड कहाकर,
मजबूर हुई उनकी लाइफ।

पुलाव बन गया फ्राइड राइस,
तबा रोटियां बन गयीं नान।
अपने स्वादिष्ट देशी भोजन की,
नहीं रही अब कोई पहचान।

साड़ी-चुनरी छोड़ दुशाले,
पहनते हम वन पीस नाईटी।
धोती-कुर्ते त्यागकर पहनते,
फटी जिन्स वह माइटी।

टोपी पगड़ी छोड़ चले हम,
पहनते हैं हम सिर में हैट।
यह ,वह बोलना हम भूलें,
मुंह बना कहते दिस-दैट।

बिलायती चूहे खरगोश को,
विस्तर पर चढ़ा सुलाते हैं।
आदमी के बच्चों को देख,
घृणा से मुंह बनाते हैं।

गैया मां को काऊ हैं कहते,
बछड़े काफ कहाते हैं।
कुत्ते को डागी कह प्यार से,
गोदी में ले घूमाते हैं।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
  स्वरचित, मौलिक

2 comments:

  1. बहुत सुंदर व्यंग्य सुजाता जी। अंग्रेज चले गए और अंग्रेजियत यहीं ठहर गए। काश हम इस मानसिकता से मुक्त हो पाते।

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  2. मानव का चुगली बड़ा रोग है,
    जिसका कहीं भी न होता इलाज।
    वैद्य-ओझा भी कुछ न करें,
    चिकित्सक भी कहते है लाइलाज।
    बनाते हैं रिश्ते में सदा वे दरार।
    बिना फीस के हैं न पाते पगार।
    चुगलखोर जब तक न चुगली करे,
    तब तक उसका उदर न भरे।
    👌👌👌👌🙏🌷🌷

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