सर्वश्रेष्ठ शासक
मगध साम्राज्य का विस्तार में सहयोग करने के हेतु चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने अधिनस्थ सम्राटों की एक सभा आयोजित की। इसमें सहयोगी सम्राटों को उनकी सहयोग की स्तर के आधार पर सम्मानित करने की भी व्यवस्था थी।इस पुनीत कार्य के लिए उन्होंने अपने राजनैतिक गुरु चाणक्य को आमंत्रित किया।
निर्धारित दिवस इस आयोजन में उपस्थित सभी सम्राट अपने -अपने क्षेत्र में अपना सहयोग प्रदान करने की बात बताई। गूरु चाणक्य के सहयोगी सभी शासकों द्वारा सहयोग की तालिका एवं सारे विवरण अंकित कर इकट्ठा करते जाते।
प्रथम सम्राट ने अपनी विस्तृत सैन्य प्रणाली की व्याख्या करते हुए महाराजा को सैन्य सहयोग प्रदान करने की बात बताई।
द्वितीय शासक ने अपने खजाने की जमा अपार धन की बड़ाई करते हुए चंद्रगुप्त मौर्य को खूब आर्थिक सहयोग करने की बात कही।
तृतीय शासक ने अपने दरबार के बुद्धिमान मंत्रियों एवं सुघड़ सलाहकारों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा हम अच्छे मंत्री एवं कुशल दरवारियों को नियुक्त कर उसे अच्छा मानधन देते हैं इसलिए वे हमारे सहयोग हेतु हमेशा तत्पर रहते हैं। आप चाहें तो मैं उन्हें आपकी सेवा हेतु भेज दूं।
चतुर्थ शासक ने अमूल्य हीरे-जवाहरातों का सहयोग देने का आश्वासन दिया।
पंचम शासक ने अपनी नयीे तकनीकी से उन्नत किस्म के अन्न उपजाने की बात करते हुए अन्न-सहयोग करने के का आश्वासन दिया।
इस प्रकार सभी शासकों ने अपनी-अपनी उपलब्धियों को बताते हुए अधिकाधिक सहयोग का आश्वासन दिया । सिर्फ एक शासक ने हाथ जोड़कर विनम्र शब्दों में कहा-महराज मैं आपको कोई भी सहयोग दे सकने में असमर्थ हूं। क्योंकि मैंने न तो सेना का विस्तार किया ना ही राजकोष में अपार संपदा इकट्ठा किया , ना ही मेरे पास कुशल दरवारी हैं ।ना ही हीरे जवाहरात हैं ।ना ही अन्न का विस्तृत भण्डार है,इसलिए मुझे क्षमा करें।
सभी उपस्थित सम्राट सीना ऊंचा कर उस सम्राट को हेय दृष्टि से निहार रहे थे।
जब सम्मान प्रदान करने का समय आया तब सभी सम्राट स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित किये जाने का इन्तजार कर उचक-उचक कर देख रहे थे।
लेकिन गुरु चाणक्य ने सभी उम्मीदवारों की इच्छा एवं आशाओं पर पानी फेरते हुए सहयोग ना करने वाले सम्राट को सर्वश्रेष्ठ सम्राट घोषित कर सम्मानित किया।सभी दरबारियों सहित महाराज चंद्रगुप्त मौर्य भी अचंभित हो गुरु चाणक्य के निर्णय को सुनते रहे। किन्तु उनके निर्णय को खण्डित करने या प्रश्न उठाने का दुस्साहस कोई नहीं कर सके।
जब सभा समाप्त हो गई तो महाराज चंद्रगुप्त मौर्य ने गुरु चाणक्य से उस असहयोगी राजा को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर सम्मानित करने का कारण पूछा। गुरु जी ने कहा-महाराज पहले आप यहां उपस्थित प्रत्येक शासक के राज्य का भ्रमण कर आएं। फिर मैं आपके इस प्रश्न का उत्तर दे दूंगा।
गुरु देव की आज्ञा मान चंद्रगुप्त मौर्य वेश बदलकर एक-एक दिन प्रत्येक अधिनस्थ राज्यों का भ्रमण करते रहे। उन्होंने देखा वहां के शासक अपनी प्रजा से मनमाने कर वसूल करते हैं और प्रजा को सुख-सुविधाओं में भी कटौती करते हैं। वहां की प्रजा की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय है। लेकिन राजकोष में अपार धन भरा है। सेना हमेशा हमेशा लड़ने -मारने को तैयार रहती है।बहुमुल्य रत्नों के ब्यापार जोर पकड़ने हुए है।यह देख महाराज चंद्रगुप्त मौर्य ने उस शासक के राज्य में पहुंचे जिसने किसी तरह का सहयोग करने से मना किया था। उन्होंने देखा कि उनके राज्य में सभी खुशहाल थे।वहां के शासक ने प्रजा की भलाई के लिए बाग -बगीचे बाबड़ी , प्याऊ -तालाब , क्रीड़ा-स्थल आदि का निर्माण करवाया है। शिक्षा की उत्तम व्यवस्था है और सभी लोग साक्षर और सुलझे विचारों वाले हैं। अल्प सैन्य व्यवस्था है जो बाह्य शत्रुओं से राज्य की सुरक्षा करने के लिए हैं। आंतरिक सुरक्षा की आवश्यकता पड़ती ही नहीं।सभी लोगों में आपसी भाईचारे का भाव भरे हैं।अपराधियों को दण्ड देने के बदले सुधार-गह में रखकर सुविचार सिखाए जाते हैं। भीख मांगना अपराध की श्रेणी में रखा जाता है।आशक्तों एवं अपाहिजों को भोजन-वस्त्र एवं आवास दान किए जाते हैं। पशुओं के लिए चारागाह एवं पक्षियों के लिए दाने की व्यवस्था है। अनावृष्टि के समय किसानों के कर माफ कर दिए जाते। स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जाता है।गरीबों को रोजगार हेतु धन दिया जाता है और उनके निर्मित सामानों की बिक्री के लिए बाजार व्यवस्था है। सफाई की उत्तम व्यवस्था है। कलाकारों को सम्मानित किया जाता है।कूल मिलाकर राज्य के लोग खुशहाल जीवन यापन करते हैं।महाराज चंद्रगुप्त मौर्य को अब समझ में आया कि गुरु चाणक्य ने उस प्रशासक के द्वारा सहयोग नहीं करने पर भी उसे सर्वश्रेष्ठ सम्राट के रूप में क्यों सम्मानित किया।शायद वे समझ रहे थे कि एक उत्तम शासक के राजकोष में इतनी राशि नहीं हो सकती कि दूसरों को अत्यधिक सहयोग प्रदान करें।वे अपने राज्य वापस आकर गुरु चाणक्य के चरणों में शीश रख दिए।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
सर्वश्रेष्ठ सम्राट की बहुत ही सुंदर विवेचना।
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