शहर के पुराने मैदान में,
दस मीटर ऊँचा खड़ा दशानन।
दस हजार जनों की भीड़ लगी है,
रावण का पुतला आज होगा दहन।
राम वेश में ,मंत्री जी ने,
उसपर छोड़े अग्नि तीर।
थु - धु कर जल उठा वह,
खुश हो उछली सारी भीड़।
साधु संतों को खूब सताना,
यग्य विध्वंस कर अहंकार दिखाना।
मदिरा पीना, मांस को खाना,
पर स्त्रियों को हरकर लाना।
उसकी सारी बुराइयाँ खाक हो जाए,
हर साल पुतले हम जलाते हैं।
पर इन सारी बुराइयों को हम,
मन से मार न पाते हैं।
कर सको तो कर लो अपने,
मन के रावण का संहार।
तुम भी राम -सा पुरोषोत्तम बन जा,
प्रफुल्लित हो सारा संसार।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 08 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुप्रभात !दीदीजी को सादर नमस्कार।मेरी रचना सांध्य दैनिक मुखरित मौन में "साझा करने के लिए आपको हमारा हार्दिक आभार।
Deleteकर सको तो कर लो अपने,
ReplyDeleteमन के रावण का संहार।
तुम भी राम -सा पुरोषोत्तम बन जा,
प्रफुल्लित हो सारा संसार।
बहुत ही सुंदर रचना । विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।
सुप्रभात! उत्साह बर्धन के लिए सादर धन्यबाद पुरोषोत्तम भाई! आपको भी विजयदशमी की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
Deleteबहुत सटीक बात कही आपने,
ReplyDeleteपरम्पराओं को निभाने के साथ सत्य भी देखें ।
सुंदर कृति।
सुप्रभात बहुत-बहुत धन्यबाद उत्साह बर्धन के लिए सखी।
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