कार्तिक की यमद्वितीया है भैया,
आज मेरे घर तू आना।
यम खाते थे यमुना घर जाकर,
आज मेरे घर तू खाना।
मुन्ने मुन्नी और भाभी को भी,
लेकर आना साथ में।
हँसी-खुशी से झोली भरकर,
लाना तू सौगात में।
पान,सुपारी और बजरियाँ,
कूट तुम्हें खिलाऊँगी।
दही-रोली का लम्बा टीका,
ललाट तेरे लगाऊँगी।
धवल ऱूई का मनका गढ़कर,
माला तुम्हें पहनाऊँगी।
हर मनके में पचास बरस का,
तेरी उमर बढ़ाऊँगी।
गोबर के चौकोने घर बनाकर
तेरे दुश्मन को कूटूँ।
कूटूँ तुम्हारे सब अबरे-भँवरे,
यम के घर- द्वार भी कूटूँ।
मिर्च राई से बुरे लोगों की,
बुरी नजर उतारूँ मैं।
बुरा मनाने वालों को रेंगनी के
काँटों को चुभाऊँ मैं।
पावन पर्व है भाई-बहनों का,
भाई के लिए आशीष भरा।
जीयो मेरे भैया लाख बरस तू
भाभी का रहे सुहाग भरा।
सुजाता प्रिय
Monday, October 28, 2019
भैया दूज
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 29 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी भाई साहब सुप्रभात।भाई दूज मनाने की व्यस्क का में आपकी सूचना देख नहीं पायी।अतएव क्षमा प्रार्थी हूँ।मेरी लिखी रचना को मुखरित मौन में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद।
Deleteगोबर के चौकोने घर बनाकर
ReplyDeleteतेरे दुश्मन को कूटूँ।
कूटूँ तुम्हारे सब अबरे-भँवरे,
यम के घर- द्वार भी कूटूँ।
बहुत ही प्यारी रचना सुजाता जी ,मैं अभी अपने घर परिवार से बहुत दूर हूँ ,और आपकी ये रचना मुझे इन सारी रीत रिवाज़ों की शिदत से याद दिला रही हैं ,मेरे घर भी बजरी कूटने की पूजा होती हैं ,जीवन में पहली बार परिस्थितिवश ये पूजा मैं नहीं कर पाई हूँ ,भाई बहन के इस पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाएं ,
धन्यबाद सखी।आपको भी सभी पर्वों की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
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