Tuesday, October 1, 2019

रंग लाल है लाल बहादुर के

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्म के ठीक ३५ वर्ष बाद २अक्टुबर को ही सन् १९०४ ई० को लाल बहदुर शास्त्री जी का जन्म हुआ था।पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव तथा माँ रामदुलारी श्रीवास्तव अपने इस दुलारे पुत्र को दुलार से नन्हें कहकर बुलाते थे।डेढ़ वर्ष की अल्पायु में ही उसके सर से पिता का साया उठ गया।
काशी विद्यापीठ से इन्होंने शास्त्री की उपाधि ग्रहण किया था। तब से वे श्रीवास्तव की जगह शास्त्री उपनाम लिखने लगे।इनका विवाह ललिता शास्त्री से हुआ था।
महात्मा गाँधी के सनिध्य में रहकर इन्होंने देश सेवा का व्रत लिया था ।गाँधीजी ने 'करो या मरो 'का नारा दिया।तो इन्होंने 'मरो नहीं मारो ' का नारा दिया जिससे देश की आजादी के दीवानों में नई स्फूर्ति और शक्ति का संचार हुआ,और वे मरने से पहले मारने को तत्पर हो उठे। 'उनका जय जवान जय किसान' का नारा आज भी किसानों को प्रोत्साहित करने में कारगर है।
स्वतंत्रता- संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और आन्दोलनों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। असहयोग आंदोलन, दाण्डी मार्च तथा भारत छोड़ो आंदोलन में तो इनकी भागीदारी बढ़-चढ़कर रही ।
महात्मा गाँधी,पुरोषोत्तम दास टंडन और पंडित गोविंद बल्लभ पंत इनके राजनीतिक मार्गदर्शक थे।
१९२९ में वे भारत सेवक संघ की इलाहावाद इकाई के सचिव पद पर पदास्थापित हुए।नेहरू जी के मंत्रीमंडल में गृहमंत्री भी बने और १९६४ में भारत देश के प्रधानमंत्री पद  को प्राप्त किया।अपने कार्यकाल में खाद्यान मुल्यों को बढ़ने से रोकने में काफी सफल रहे।उनके सारे क्रियाकलाप व्यवहारिक और जनता की जरूरतों के अनुकूल हुआ करती थी।
१९६५ में जम्मू-कशमीर के विवादित प्रांत पर पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई का इन्होंने हिम्मत और दृढता से सामना किया।१०जनवरी १९६६ को लाल बहदुर शास्त्री जी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयुब खान के साथ रूस के ताशकंद में एक समझौता किया कि भारत और पाकिस्तान अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और आपसी झगड़ो का निपटारा शांतिपूर्ण तरीके से करेंगे। सादगी और देशभक्ति उनमें कूट-कूटकर भरी थी। ११ जनवरी १९६६ को देश के इस वीर सपूत का देहावसान ताशकंद में ही हो गया।१९६६ में ही इन्हें मरणोंपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
                   सुजाता प्रिय

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