Friday, October 11, 2019

प्रेम का डेरा

कोई ना समझे मन को मेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा।
इस  डेरे  में प्रेम के  कमरे,
चाहो आकर रख ले बसेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा

दुनियाँ समझे मोहे दीवानी।
छल-प्रपंच से मैं अनजानी।
हर प्राणि से प्रेम है मुझको।
ना कोई तेरा , ना कोई मेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा।

प्रेम ही पूजा, प्रेम है अर्चन।
प्रेम ही जप तप और कीर्तन।
प्रेम आराधन , प्रेम है बंदन ।
प्रेम से गाये हम साँझ-सवेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा।

प्रेम बिना यह जग है सूना।
सुगंध  बिना  जैसे  प्रसूना।
मन मेरा है प्रेम  पिपासित ।
प्रेम तू आकर लगा ले फेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा।

प्रेम में ही  है  सारी शक्ति।
प्रेम में भक्ति और आशक्ति।
प्रेम में रखते हम अनुरक्ति।
चारो ओर है प्रेम का घेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा।

प्रेम की महिमा अपरम्पार।
इसके वश में है सारा संसार।
ढाई अक्षर का प्रेम हो दिल में।
इसके रंग में रंगे दिल मेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा।
               सुजाता प्रिय

12 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद स्वेता! मेरी रचना को सोमवारीय विशेषांक में साझा करने के लिए।

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  2. बहुत सुंदर सृजन सुजाता जी,प्रेम का महत्त्व व ताकत बताती सरस रचना।

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  3. बहुत-बहुत धन्यबाद बहना! उत्साह बर्धन के लिए आभार आपका ।

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  4. प्रेम ही पूजा, प्रेम है अर्चन
    प्रेम ही जप तप और कीर्तन
    प्रेम आराधन , प्रेम है बंदन

    प्रेम के हर पहलु को दर्शाती मनभावन रचना सुजाता जी ,सादर

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    1. धन्यबाद सखी।बहुत ही आभार आपके सुविचारजन्य उत्साह बर्धन के लिए।

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  5. प्रेम बिना यह जग है सूना।
    सुगंध बिना जैसे प्रसूना।
    मन मेरा है प्रेम पिपासित ।
    प्रेम तू आकर लगा ले फेरा।
    यह मन तो है प्रेम का डेरा। बेहतरीन रचना सखी 👌

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी

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  6. दुनियाँ समझे मोहे दीवानी।
    छल-प्रपंच से मैं अनजानी।
    हर प्राणि से प्रेम है मुझको।
    ना कोई तेरा , ना कोई मेरा।
    यह मन तो है प्रेम का डेरा।
    जिस मन में प्रेम हो, वहीं ईश्वर का वास।
    बहुत सुंदर रचना सुजाता जी

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  7. प्रेम ही प्रेम चहूँ ओर ......मनमोहक रचना

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