जीयो मेरे वीर धरती पर
हरियाली फैलानेवाले।
साईंकिल यात्रा कर धरा पर
अनगिनत वृक्ष लगानेवाले।
मरुभूमि हो चली धरा पर
फैलाकर तुम हरियाली।
धरती माँ के राजदुलारे ,
वीर सपूत इसके माली।
निर्मल मन के गंगाजल से
धरती सिंचित करने हेतु।
अमर प्रेरणा का प्रतीक
हरित क्रांति का विजय केतु।
वन-उवपन विहसा-हुलसा
पुलक उठा पवन पुनीत।
प्राणि-प्राणि में प्राण फूंक
चलाए तूने यह पावन रीत।
तेरा यह द्विचक्रिका वाहन
धूएँ का अवरोधक है।
पेट्रोल डीजल नहीं है पीता
वायु प्रदूषण शोधक है ।
जिधर जहाँ बढ़ता जायेगा
गुंजेगा तुम सबका जयगान।
दिशा-दिशा दृष्टिगोचर होगा,
के तेरा यह विजय निशान।
तू बढ़े चलो तो जग भी तेरे
पीछे - पीछे बढ़ता जायेगा।
तेरा विजयी हरित पताका ,
जग भर में लहरायेगा।
तुम सब हो सच्चे कर्मयोगी,
तुमसब ही हो सच्चे संत।
अमर रहेगी तेरी साधना ,
युग-युग तक और दिग् दिगंत।
तेरा गौरव सदा रहेगा,
तुमपर है सबको अभिमान।
बढ़ता जा तू , बढ़े निरंतर ,
हरित बसुंधरा का अभियान।
सुजाता प्रिय
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