Saturday, October 5, 2019

कन्यापूजन ( हमारी जैसी माँओं को कन्यापूजन का ढोंग करना व्यर्थ है)

थका हारा शक्ति आकर शोफै पर बैठे गया।
शारदा ने पूछा क्या आ रही हैं लड़कियाँ ?
नहीं मम्मा  मैने  कम से कम पचीस- तीस घरों में जाकर  ढूंढा ज्यादातर लोग बोले मेरे घर तो लड़की है ही नहीं।कुछ लोग बोले मेरी बेटी तो बुआ घर अथवा नानीघर गई है।कुछ बोले कन्यापूजन के लिए पंडाल गई है ।अब मैं कहाँ- कहाँ ढूंढू  ? मुझसे अब यह नहीं होगा।
शारदा ने पूरे नौ दिन उपवास रखकर श्रद्धा पूर्वक माता रानी का पूजन तथा दुर्गा शप्तशती का पाठ किया। लोगों से सुनी कन्यापूजन से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है । सो उसने भी अपने दोनों बेटों को भेज दिया मुहल्ले की बच्चियों को बुला लाने।तीन घंटे से पूजन सामग्री तथा मिष्ठान लेकर बैठी है।पर एक भी बच्ची कन्यापूजन के लिए नहीं मिली।
आशा की किरण जगी। छोटा बेटा भक्ति ने घर में प्रवेश किया।क्या आ रही है भवानी ? उसने उतावलेपन से पूछा। नहीं मम्मा मैं तो कितनी देर इंतजार किया । वह जिसके घर जाती है वहाँ से उसे कोई अपने घर से जाता है। उसके घरवाले को भी नहीं पता वह किसके घर है ?
माँ - बेटों की बातें सुनकर सुशीलजी बाहर निकले।बोले रुको मैं अपने अॉफिस के सुशांत जी को फोन करता हूँ।वे अपने मुहल्ले की बच्चियों को लेकर आ जाएँगे।लेकिन फोन पर बातें करने के बाद उन्होंने कहा - सुशांतजी कह रहे हैं कि उन्हें भी कन्यापूजन के लिए लड़कियाँ नहीं मिली ।अंततः वे अपनी इकलौती बेटी को ही बैठाकर कन्यापूजन कर लिए।क्या जमाना आ गया  ? अब तो टोले - मुहल्ले में भी लड़कियाँ नहीं मिलती । पहले तो घर परिवार में ही इतनी लड़कियाँ मिल जाती थीं।
शारदा का मन उदास हो गया।सोंची काश उसे भी एक बेटी होती, तो उसे ही बैठाकर कन्यापूजन कर लेती ।
लेकिन तुम्हें भी एक बेटी होती कैसे ? उसके अंतर्मन ने उसे उसकी अतीत की याद दिलाते हुए कहा । तुमने तो स्वयं अपने पेट में पल रही बच्चियों को नष्ट करवाया ।
लेकिन मैं करती भी क्या ? परिवार की यही इच्छा थी। उसने मन -ही-मन अपने मन से कहा ।
तुम उनका विरोध तो कर सकती थी? तुम जानती थी कन्या भ्रुण हत्या घोर अपराध है। इसके लिए हमारे देश में कितना सशक्त कानून बना है । तुम चाहती तो उसका सहारा लेकर अपने गर्भस्थ बेटियों को बचा सकती थी।
लेकिन ऐसा करने से मेरा पूरा परिवार ही फँस जाता।
तो क्या वे बेटियाँ तुम्हारे परिवार की हिस्सा नहीं थीं ?  आज दूसरे की बेटियों को ढूंढ रही हो और अपनी बेटियों को......................................
हाँ- हाँ मैं अपराधन हूँ ।उसने बुदबुदाते  हुए अपने दोनों बेटों को देखा ।जिनकी उम्र में लगभग पाँच साल का अंतर था। इस बीच उसने तीन बार अपने भ्रुण का पता लगबाकर अपने गर्भस्थ बेटियों का गर्भपात करबाया। तो अन्य माँ भी ऐसा ही करती होंगी । फिर आज किसी के घर में कन्या कैसे मिलेगी ? अगर हमारे माता-पिता भी हमारे साथ ऐसा वर्ताव करते तो क्या आज हमारा अस्तीत्व होता ?
'हमारी जैसी माँओं को कन्यापूजन का ढोंग करना व्यर्थ है।'
सुशीलजी उसकी बुदबुदाहट सुन रहे थे। अपराधबोध  से उनकी आँखें भर आईं।कन्यापूजन के लिए रखे सामग्रियों के पास जाकर वे अपना सिर झुका लिये।
                                        सुजाता प्रिय

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