कार्तिक कृष्ण त्र्योदशी,
अवतार लिए धनवंतरी।
अंश हो महाविष्णु के,
हे रोग नाशक श्रीहरि।
चतुर्भुज पीताम्बरा,
चंदन तिलक है माथ में।
शंख ,चक्र औषधि- पत्र,
अमृत-कलश है हाथ में।
समुंद्र मंथन के समय ,
शम्भू किए विषपान जब।
रक्षा हेतु उनको आपने ,
अमृत किया प्रदान तब।
परिपूर्ण करते अन्न-जल,
धन-धान्य देकर यह धरा।
वरदान का तू दान देकर,
चलाये दान- परम्परा।
हर जीव के उर में विराजे,
तेरा अलौकिक रूप है।
नर-नारी संत-फकीर योगी,
वैरागी रंक और भूप है।
हर प्राणि तेरा पुत्र सम,
सबसे तुझको प्यार है।
जीवन दाता ,प्रथम वैद्य,
तुम्हें नमन बारम्बार है।
. सुजाता प्रिय
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