Friday, October 4, 2019

पर्दे की शोभा

मत गौर करो,
पर्दे की रंग -रूप सुंदरता पर,
पर्दे की  शोभा तो  बस लाज  छुपाने में है।

नजरों से बचने
के लिए तन को ढकते हैं हम,
पर्दा तो नग्नता देख,नजरें घुमा हट जाने में है।

किसी पर्दा नशीं
को बेपर्दा न करो लोगों,
अच्छाई तो बेपर्दों की लाज  बचाने में है ।

नजरें घुमाना पर्दा नहीं,
नजरें  चुराना भी पर्दा नहीं,
पर्दा तो गलतियों पर , नजरों को झुकाने में है।

शर्मों-हया से खुद
गिर जाते हैं आँखों के पर्दे,
पर्दा तो केवल लाजवंतियों  के शरमाने में है।

यूं तो , बेपर्दे ही ,
खुलेआम,  नहाते हैं लोग,
पर ,असली पर्दा तो, हमाम में नहाने में है।

पर्दे  की बातें,
पर्दे  में ही लगती है अच्छी,
न की सरेआम ,सबको, सबकुछ दिखाने में है।

यूं ही तो नहीं ,
आया होगा, पर्दे का चलन,
इसकी रीत तो, हर युग और हर जमाने में है।

            सुजाता प्रिय

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ७ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. सुक्रिया स्वेता।

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  3. नजरें घुमाना पर्दा नहीं,
    नजरें चुराना भी पर्दा नहीं,
    पर्दा तो गलतियों पर , नजरों को झुकाने में है

    बहुत खूब... ,सुंदर सृजन सुजाता जी ,सादर

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    1. धन्यबाद बहना।नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी

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    1. धन्यबाद सखी! आभार आपका ।नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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