हम कहाँ जा रहे हैं
कोई तो बता , हम कहांँ जा रहे हैं ?
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?
सदाचार को हम नहीं अपनाते।
दूराचार को अपने गले से लगाते।
भाईचारे को हम न अपना रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?
राम-रहीम पर करते हम झगड़ा।
मंदिर औ मस्जिद के नाम रगड़ा।
जाति-मजहब में फंसे जा रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं?
हमें लक्ष्य अपना दिखाई न देता।
विजय के लिए हम बने हैं प्रणेता।
स्वयं राष्ट्र विध्वंस किए जा रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?
त्याग रहे अपनी सभ्यता-संस्कृति।
बोली-व्यवहार में कर रहे विकृति।
परिजनों पर अपने कहर ढा रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?
भाई-भाई आपस में लड़ते रहेगें।
तो हरदम मुसीबत में पड़ते रहेगें।
दूजे को घर लूटने को बुला रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?
हम स्वयं जागें , सभी को जगाएँ।
अपनों को अपने , गले से लगाएँ।
क्यों अच्छाइयों से हम घबरा रहे हैं ?
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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