पंगत व्यवस्था या वफे सिस्टम
आधुनिकता की होड़ ने हमारी पौराणिक परम्पराओं को ध्वस्त कर दिया है।हम सभी अपनी प्राचीन रीति रिवाजों को त्यागकर पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति को अपनाते जा रहें हैं और उसी दुष्परंपराओं को अपनाने में गर्व महसूस करते हैं।
हमारी प्राचीन सभ्यता सदा वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित था जो सदैव लाभकारी व्यवस्था था।पंगत में भोजन करने की व्यवस्था सर्वप्रथम आपसी भाईचारे एवं सहयोग को बढ़ावा देता था।घर में या भोज-स्थल में धरती पर ही सुंदर और साफ सुथरे आसन पर हमें आदर पूर्वक आगवानी कर बैठाया जाता था और पवित्र धातुओं के वर्तनों में प्रेम और श्रद्धा के साथ पूछ-पूछकर खिलाया जाता था। पवित्रता के ख्याल से ही फिर पत्रपात्र यानी पत्तल व्यवस्था था। भोजन परिवेशन से पूर्व जल दिया जाता था । जिससे लोग अपने हाथों को पवित्र करने के साथ-साथ वर्तनों को भी पवित्र कर लें।
भोजन के प्रकारों को भी पहले बताकर और पूछ-पूछकर परोसा जाता था। भोजन के मध्य में भी पूछा जाता था और अंत में दही-मिष्ठान देकर भोजन समापन किया जाता था।भोजन के उपरांत भी लोग पंक्ति में बैठे लोगों के खाने का इंतजार करते थे और सभी के खाने के पश्चात एक साथ उठते थे।इस प्रकार सभी जनों में आपसी प्रेम-संभाव बना रहता था। पंगत व्यवस्था में भोजन करने से पाचन क्रिया सरल होती थी।
लेकिन आजकल का फैशनेबल लंबे सिस्टम नें उन सभी मर्यादाओं को रौंदकर रख दिया है। भोजन के समय कोई किसी की परवाह नहीं करते।ना ही कोई किसी को भोजन ग्रहण करने का आग्रह करते हैं ना ही कोई किसी को बोलता पूछता है।सभी लोग खाने-पीने का सामान देख स्वयं ही भोजन करने टूट पड़ते हैं। ना ही बोलने की आवश्यकता ना ही पवित्रता का ध्यान किसी को रहता है। कितने लोग तो जूठे हाथों से ही भोजन सामग्री उठा लेते हैं। इस तरह से बहुत से कारणों से लंबे सिस्टम में भोजन कराया जाना सही नहीं है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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