यह सच है कि आज हमारा समाज आधुनिकता के दौर से गुजर रहा है।हम गाँव की अपेक्षा शहरों मे रहना अधिक पसंंद करते हैं।छोटे घरों की अपेक्षा आलिशानों में रहने में गर्व महसूस करते हैं।निकट स्थानों में भी वाहनों द्वारा ही जाना चाहते हैं।सच पूछें तोआधुनिकता के इस होड़ में हम प्रकृति का दोहन करने लगते हैं जिससे हमारा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।
अब हमें सचेत होना होगा।पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए।हम आधुनिक बनकर भी पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
हमारी पहली कोशिश होनी चाहिए की भवन-निर्माण के समय अकारण पेड़ -पौधे को नष्ट न करें।अपने घरो में पेड़-पौधों के लिए भी थोड़ा स्थान रखें।गमलों में भी छोटे-छोटे पेड़-पौधे एवं फूल लगाकर हरियाली बढ़ायें।
नदी तालाबों ,जलाशयों जंगल मैदानों का अतिक्रमण कर गृह निर्माण न करें।वल्कि उनकी साफ-सफाई तथा रख-रखाव की जिम्मेदारी व्यक्तिगत या सामुहिक रूप से लें।
निकट के हाट- बाजार,मंदिर,विद्यालय आदि स्थानों पर वाहन से न जाकर पैदल जाने की आदत डालें ।इस प्रकार हम स्वस्थ्य भी रहेंगे औरवाहनों से निकलने वाले धूएँ से हमारा वायु भी प्रदूषित होने से बचेगा।
हम अपने घरों को तो साफ-सुथरा रख लेते हैं लेकिन घर के कूड़े-कचरे सड़कों तथा नदी-तालाबों में फैला देते हैं।इन आदतों में सुधार लाना होगा।
यूं कहें जल,जंगल और जमीन की सुरक्षा कर ही हम पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।सच्चे अर्थों में पर्यावरण की सुरक्षा और संतुलन ही हमारी सच्ची आधुनिकता होगी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
अब हमें सचेत होना होगा।पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए।हम आधुनिक बनकर भी पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
हमारी पहली कोशिश होनी चाहिए की भवन-निर्माण के समय अकारण पेड़ -पौधे को नष्ट न करें।अपने घरो में पेड़-पौधों के लिए भी थोड़ा स्थान रखें।गमलों में भी छोटे-छोटे पेड़-पौधे एवं फूल लगाकर हरियाली बढ़ायें।
नदी तालाबों ,जलाशयों जंगल मैदानों का अतिक्रमण कर गृह निर्माण न करें।वल्कि उनकी साफ-सफाई तथा रख-रखाव की जिम्मेदारी व्यक्तिगत या सामुहिक रूप से लें।
निकट के हाट- बाजार,मंदिर,विद्यालय आदि स्थानों पर वाहन से न जाकर पैदल जाने की आदत डालें ।इस प्रकार हम स्वस्थ्य भी रहेंगे औरवाहनों से निकलने वाले धूएँ से हमारा वायु भी प्रदूषित होने से बचेगा।
हम अपने घरों को तो साफ-सुथरा रख लेते हैं लेकिन घर के कूड़े-कचरे सड़कों तथा नदी-तालाबों में फैला देते हैं।इन आदतों में सुधार लाना होगा।
यूं कहें जल,जंगल और जमीन की सुरक्षा कर ही हम पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।सच्चे अर्थों में पर्यावरण की सुरक्षा और संतुलन ही हमारी सच्ची आधुनिकता होगी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
बहुत अच्छी प्रेरक सामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteसही कह रही हैं आप, पर्यावरण की सुरक्षा और संतुलन ही हमारी सच्ची आधुनिकता होगी।
ReplyDelete