अग्निवीरों कुछ तो बोलो
मन भ्रमित क्यों हुआ तुम्हारा?
अग्निवीरों कुछ तो बोलो!
शांतिपूर्ण वातावरण में अब,
कभी नहीं तुम विष घोलो।
उत्पात मचाने दौड़ रहे हो,
बोलो क्या है यह बात सही।
शांतिपूर्वक विचार करो तुम
हुड़दंगों से सुरक्षित होंगी मही।
अपने ही कर से तुमने है,
विनाश किया सम्पत्तियों को।
स्वयं सभी भाई-भाई मिल
कर रहे आमंत्रित विपत्तियों को।
तुम्हें अग्निपथ स्वीकार नहीं,
पर क्रोध में अग्नि बरसाये।
रणक्षेत्र बना देश को तुम,
आग- लगावन ही तो कहलाये।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन यदि करते,
बुद्धिजीवी सपूत तुम कहलाते।
देश का मस्तक ऊंचा करते,
निज भाल उठाकर दिखलाते।
स्वयं देश द्रोही बन बैठे तो,
बता देश को कौन सम्हालेगा।
सच लगता बाहर वाला आकर,
तेरे घर से तुम्हें निकालेगा।
शांतिपूर्ण और सौहार्द से अगर,
तुम बात अपनी रख पाते।
अपनी मन की बातों को तुम,
रख प्रेम -भाव से मनबाते।
राष्ट्र-हित के हेतु जिन्होंने,
किया अपने प्राण न्यौछावर।
तड़प रही होगी आत्मा उनकी,
तेरे कर्मों से उकता कर।
सुजाता प्रिय समृद्धि
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