Friday, November 8, 2019

मौन भाषा

               भाषा तो
          बहुत है दुनियाँ में,
मौन भाषा की महिमा ही अलग।
               न अक्षर
           इसके ना मात्राएँ,
फिर भी इसकी गरिमा ही अलग।
                इसकी
         कोई आवाज नहीं,
बिन बोले सबकुछ कह जाती।
             इस भाषा
         के विशाल हृदय,
सबके फिकरे को सह जाती।
       .    बोली जाती
           न सुनी जाती,
न लिखी जाती न पढ़ी जाती।
              पर जाने
           इसके पन्नें पर,
कितनी बोलियाँ हैं गढ़ी जातीं।
              इस भाषा
         को हथियारों बना,
पराजित करते हम दुश्मन को।
            हम जीतते
           हैं संग्राम बड़े,
मिलतीे हैं खुशियाँ जीवन को।
             अम्मा के
          मौन इशारे से,
समझ जाते थे हम बात बहुत ।
            पिताजी के
         मौन नजरिये से,
हम पाते थे  सौगात  बहुत।
            पर मौन
       हमें उकसाती है,
कि सदा नहीं तुम मौन रहो।
            दुनियाँ
      बोले कड़बी बोली,
कुछ मीठी वाणी तुम भी कहो।
            जब मौन
      रहोगी हरदम तुम,
समझेगी दुनियाँ कमजोर तुझे।
            कुछ उल्टी
       -सीधी बात बना,
वह देगी सदा झकझोर तुझे।
          सुजाता प्रिय

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ११ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

    ReplyDelete
  2. बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता। मेरी लिखी रचना को सोमवारीय विशेषांक में साझा करने के लिए ।साभार स्नेह

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन रचना सखी 👌👌

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर सृजन सखी! मौन के नाना रूपों का सहज चित्रण।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत-बहुत धन्यबाद सखी

      Delete
  5. जब मौन
    रहोगी हरदम तुम,
    समझेगी दुनियाँ कमजोर तुझे।
    कुछ उल्टी
    -सीधी बात बना,
    वह देगी सदा झकझोर तुझे
    बहुत खूब....सुजाता जी ,सादर नमन

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर नमन।आभार आपका।

      Delete