Friday, November 22, 2019

बिटिया बोली

पेट में पलती बिटिया बोली-
मुझे न मारो माँ- पिताजी।

जनम लेते ही बिटिया बोली-
मुझे न फेको माँ-पिताजी।

दूध पीती बिटिया बोली-
गले लगा लो माँ-पिताजी।

भूख से ब्याकुल बिटिया बोली-
मझे खिला दो माँ-पिताजी।

बड़ी होकर के बिटिया बोली-
मुझे पढ़ा दो माँ-पिताजी।

पढ़ लिखकर बिटिया बोली-
मुझे कमाने दो माँ-पिताजी।

पैसे कमाकर बिटिया बोली-
मैं तेरा सहारा माँ-पिताजी।

ब्याह हुआ तो बिटिया बोली-
मुझे भूल न जाना माँ-पिताजी।
                   सुजाता प्रिय

14 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२४ -११ -२०१९ ) को "जितने भी है लोग परेशान मिल रहे"(चर्चा अंक-३५२९) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. जी सादर नमस्ते अनीता बहन।मेरी इस प्रविष्टि की चर्चा "जितने भी हैं लोग परेशान मिल रहे।" चर्चाअंक में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २५ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  4. मेरी रचना को सोमवारीय विशेषांक में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद स्वेता।

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  5. बेहतरीन रचना सखी 👌

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  6. माँ-पिताजी, 'भैया को दीने महले-दो महले, हम का दिया परदेस?

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  7. हर समय बेटी एक प्रश्न के साथ खड़ी है,ये प्रश्र सिर्फ माता पिता से नहीं पुरे सामाजिक परिवेश से है कि करता बेटियां सहज जीवन नहीं पा सकती ।
    सुंदर प्रस्तुति।

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    1. कृपया क्या पढ़े करता को ।

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    2. जी धन्यबाद सखी।

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  8. वाह!!सखी ,बहुत खूब !

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