तेरे भीतर गुण की खान,
परत हटाकर देखो।
असीम शक्ति अथाह ग्यान,
पलक उठाकर देखो।
ऐ मानव तुम तो ईश्वर की,
रचना है सबसे सुंदर।
अकूत संपदा के तुम मालिक,
भंडार छिपा तेरे अंदर।
अपनी कीर्ति को पहचान,
परत हटाकर देखो।
पलक उठाकर देखो।
धरा पर ऐसा मनुष्य नहीं,
जिसमें कोई गुण न होता है।
गुणवानों में भी कुछ-ना
-कुछ तो अवगुण होता है।
रह मत इससे तू अनजान,
परत हटाकर देखो।
पलक उठाकर देखो।
अब सबसे जलना छोड़ो ,
मन से द्वेष हटा कर तू।
उपयोग करो अपने गुण का,
मन का क्लेश मिटाकर तू।
बन जाओगे बहुत महान,
परत हटाकर देखो।
पलक उठाकर देखो।
सुजाता प्रिय
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर धन्यबाद सखी।
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