मानवता
की छवि बिगड़ता
युग देखो।
दानवता
का रूप निखरता
युग देखो।
राजनीति
का खेल निराला
युग देखो।
हर जगह
हो रहा घोटाला
युग देखो।
फैल रही
महंगाई भीषण
युग देखो।
हो रहा
जनता का शोषण
युग देखो।
कहीं है
कीमती ऊँची कोठी
युग देखो।
कहीं नहीं
है पेट भर रोटी
युग देखो।
पढ़े-लिखे.
बेकार पड़े हैं
युग देखो।
अनपढ़ों की
कतार बनी है
. युग देखो।
सुजाता प्रिय
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