Friday, June 21, 2019

पालकी मेरी सजा री बदरिया (वर्षा गीत)

पालकी  सजा , सजा री बदरिया।
घनघोर घटा तू ओढ़ा दे ओहरिया।

आ  रे पयोधर लट सुलझा दे।
मेघ तू मेंहदी,बिंदिया सजा दे।
काली मेघा लगा दे कजरिया।
आज  बनूँगी मैं  तो बहुरिया।

पहनकर बरखा झमझम चोली।
सखी घन से वह हँसकर बोली।
पहना  आकर  भींगी चुनरिया।
खोइछा-पुड़िया भर दे अचरिया।

हइया , हइया गीत तू  गाकर।
कांधे  मेरी  पालकी  उठाकर।
तेज चाल से चल रे कहरिया।
ले चल हमको पृथवी नगरिया।

रात  घनेरी  राह  न  सूझे।
पंथ  पुराने  लगे  अनबूझे।
रोशनी हमें दिखा री बिजुरिया।
धरा  मिलन की  आई  बेरिया।
                    सुजाता प्रिय

14 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. पाँच लिकों के आनंद पर मेरी इस छोटी-सी रचना को साझा करने के लिए धन्यबाद श्वेता। धन्यबाद

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    1. बहुत- बहुत धन्यबाद बहन।

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  3. बेहतरीन सृजन सखी
    सादर

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    1. सादर धन्यबाद सखी।

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  4. बहुत सुंदर माटी की महक लिए आंचलिक सौंदर्य के साथ सरस सृजन।

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    1. बहुत अच्छा लगा सखी।सादर धन्यबाद उत्साह बढ़ाने के लिए।

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  5. लोक भाषा में सजी बहुत ही सुंदर, मनमोहक रचना...

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  6. बहुत- बहुत धन्यबाद बहन।सादर

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  7. वाह ! क्या कल्पनाशीलता है !!! लोकभाषा के माधुर्य से सजी सुंदर रचना !!!

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    1. जी सादर धन्यबाद सखी

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  8. मिठी बोल वाली रचना। मन प्रसन्न हो गया

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद

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