Wednesday, June 19, 2019

आवश्यकता अनंत

यह जीवन तृष्णा का घट है ,
प्यास  सदा  बढ़ती  जाए।
और मिले कुछ और मिले,
यह चाह सदा बढ़ती जाए।

क्षुधा मिटे तो वसन चाहिए,
वसन मिले जाए तो आवास।
आवास  मिल  जाने.  पर,
मन में आता भोग- विलास।

भोग-विलास की मरिचिका में,
भटक रहा  जन- जन है।
अधिकाधिक पाने की इच्छा से,
व्यथित  यह  मन  है।

इस जीवन में आवश्यकताओं का,
अंत   नहीं  हो  सकता  है।
एक  पूर्ण हो  जाता  तो,
पुनः दूसरा आ जाता है।

अनावश्यक इच्छाओं के दमन से,
इस पर विजय पा सकते हम।
संयम  से  ही  इच्छाओं   की,
प्यास  बुझा  हैं  सकते हम।
                     सुजाता प्रिय

3 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. सचमुच संयम बहुत जरुरी है.

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  3. जी सार्थक और प्रेरणादायी रचना संयम की शिक्षा बहुत सी बुराईयों पर स्वतः पूर्ण विराम है।

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