यह जीवन तृष्णा का घट है ,
प्यास सदा बढ़ती जाए।
और मिले कुछ और मिले,
यह चाह सदा बढ़ती जाए।
क्षुधा मिटे तो वसन चाहिए,
वसन मिले जाए तो आवास।
आवास मिल जाने. पर,
मन में आता भोग- विलास।
भोग-विलास की मरिचिका में,
भटक रहा जन- जन है।
अधिकाधिक पाने की इच्छा से,
व्यथित यह मन है।
इस जीवन में आवश्यकताओं का,
अंत नहीं हो सकता है।
एक पूर्ण हो जाता तो,
पुनः दूसरा आ जाता है।
अनावश्यक इच्छाओं के दमन से,
इस पर विजय पा सकते हम।
संयम से ही इच्छाओं की,
प्यास बुझा हैं सकते हम।
सुजाता प्रिय
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सचमुच संयम बहुत जरुरी है.
ReplyDeleteजी सार्थक और प्रेरणादायी रचना संयम की शिक्षा बहुत सी बुराईयों पर स्वतः पूर्ण विराम है।
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