Monday, June 24, 2019

मॉनसून ( कविता)

मॉनसून

बीता  मौसम  गर्मी  का,
मॉनसून  ने ली अंगड़ाई।
धूमिल हैं सूरज की किरणें,
आसमान में  बदली छाई ।

आषाढ़ माह है बीत रहा,
लेकिन यह बात अनूठी है।
नभ  के  मेघ नहीं बरसते,
क्या  वर्षा  रानी रूठी  है?

पेड़ों  के काटे जाने से,
हरियाली  है  छट  रही।
मॉनसून का मन है सूना,
जलवृष्टि  भी  घट  रही।

धरती माँ के  आचल मैं,
बीजों के टाक सितारें हम।
लता तथा पेड़ों से मढ़ दें,
बेल - बूटे  प्यारे  हम।

दमक उठेगा माँ का दामन,
वृक्षों  की  हरियाली  से ।
हम सबको भी प्यार मिलेगा,
उन तरुवरों की डाली से ।
                 सुजाता प्रिय

7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. वाह बहुत खूबसूरत रचना।

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  3. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद बहन

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