छुपकर बैठी बोल कहाँ तू,
ओ काली मेघों वाली!
प्यास बुझा आकर वसुधा की
ओ काली मेघों वाली!
तृष्णाहत इसके प्राण विकल है।
असीम पीड़ा से यह विह्वल है।
आकर इसका तपन बुझा तू,
ओ काली मेघों वाली!
जीवन में भर दे रसधारा।
हर ले आकर अन्तर्ज्वाला।
बूंद-बूंद अमृत बरसा तू ,
ओ काली मेघों वाली।
सुजाता प्रिय
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