Wednesday, April 19, 2023

दो बूंद इश्क (विधाता छंद )

दो बूंद इश्क 
भरी कितनी लबालब है,तुम्हारी इश्क की शीशी।
मगर देते नहीं मुझको,कभी दो बुंद परदेसी।

तुम्हारे इश्क में मैंने,जहां अपना लुटाया है।
मुझे जो प्यार करता था,उसे पल में भुलाया है।

उसी का मान रख लेना,नहीं मुझको दगा देना।
मुझे दो बूंद अभी देना,गले अपने लगा लेना।

यही दो बुंद जीवन भर,रहे साथी सदा मन में।
नहीं कोई गिला तुझसे,नहीं शिकवा किसी क्षण में।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, April 18, 2023

गणेश वंदना (विधाता छंद )

गणेश वंदना (विधाता छंद)

गजानन जी पधारो तुम,हमें बस आस तुम पर है।
अभी आजा हमारे घर, तुझ बिन न शोभता घर है।।

भला किसको बुलाऊंँ मैं,मुझे बस आस है तेरी।
जरा आकर नजर फेरो,करो ना आज तुम देरी।।

लगाकर कूश का आसन,बिठाऊँ आपको उसपर।
नहाकर साफ जल से मैं, सजाकर रेशमी चादर।।

लगाऊंँ भाल पर चंदन,चढ़ाऊँ फूल की माला।
लगाऊंँ भोग लड्डू का,पिलाऊँ दूध का प्याला।।

चरण तेरे पडूँ देवा,जरा मुझ पर दया करना।
अगर पथ में रुकावट हो,सुनो उसको अभी हरना।।

बना दो आज बिगड़ी तुम,मिटा दो क्लेश सब मन की।
पकड़ पतवार हाथों से,उबारो नाव जीवन की।

मुझे आशीष दो इतना,सभी पूरी मनोरथ हो।।
मुझे मंजिल मिले मेरी,रुके कोई नहीं पथ हो।।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, April 13, 2023

प्यार की फुहार में

प्यार की फुहार में 

चल रे साथी हम नहाएँ,प्यार की फुहार में।
जिसमें मन निर्मल हो जाए,उस नदी की धार में।
चल रे साथी......................
प्रेम की दरिया बड़ी है,चल लगा लें डुबकियाँ।
मन के सारे मैल धो लें,स्वच्छ मन कर लें यहाँ।
पार कर लें प्रेम दरिया,रुकें नहीं मझधार में।
चल रहे साथी......................
प्यार का गहरा समंदर,प्रीत के गोते लगा।
प्रेम-मोती बीन लें,दुष्प्रेम की सीपी हटा।
प्रीति धागे में पिरो लें,मोतियों को हार में।
चल रहे साथी......................
प्रीति पर्वत से है झरता, प्रेम का निर्झर सदा।
साथ अपने है बहाता,विद्वेष का पतझड़ सदा।
जिसमें कोई छल नहीं है,बह लें उस उद्गार में।
चल रहे साथी......................
प्रीत है एक झील गहरी,जिसके मन में धीर है।
शांत-चित से प्रेम करता,हृदय बड़ा गंभीर है।
झूठ का हलचल नहीं है,सच्चाई जिसके प्यार में।
चल रे साथी...............
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                   स्वरचित, मौलिक

Tuesday, April 11, 2023

हे माता पटनदेवी (कृपाण घनाक्षरी)

हे माता पटनदेवी ( कृपाण घनाक्षरी )


माता खोलो ना कपाट,
                तेरा भक्त जोहे बाट,
सारे विघ्न माँ दे काट,
                 भक्त खड़े तेरे द्वार।

खड़े भक्त हैं कतार,
                  आस लेकर हजार,
करते तेरी पुकार,
                 संकट से तू उबार।

पटना की महारानी,
                    पटनदेवी भवानी,
तेरी दुनिया दीवानी,
                लाज रख इस बार।

तेरे नाम का नगर,
                किसी को यहाँ न डर,
सब दुख लेती हर,
                  मात कर उपकार।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, April 9, 2023

घड़ा (हरिहरण घनाक्षरी)

घड़ा  (हरिहरण घनाक्षरी )

गीली- मिट्टी गूथकर,
  थोड़ा बालू मिलाकर,
     चाक  पर  रखकर,
        लकुट से घुमाकर ।

हाथ जल लगाकर,
   मिट्टी पर दबाकर,
    घड़ा आप बनाकर,
      सुतली से काटकर,

छाँव तले सुखाकर,
  लकड़ियांँ जलाकर,
    आवे पर पकाकर,
      घर उसे ले जाकर,

प्रातः पानी छानकर,
   रखें घड़े डाल कर,
    ठंडा जल को पीकर, 
        रहें आत्मतुष्ट कर।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, April 5, 2023

जय श्रीराम (विधाता छंद )

जय श्री राम राजा की,अयोध्या धाम की जय हो ।
राम का नाम लेने से,जगत का जीव निर्भय हो।।

पिता की आज्ञा पालन को,गए वनवास खुश मन से।
न मन में कोई दुख लाए,न हुए निराश जीवन से।।

किसी के नाम से पहले,राम का नाम तुम लेना।
घड़ी दो-चार तुम लेना,सुबह औ शाम तुम लेना।।

जी मर्यादा का जीवन,पुरुष उत्तम बने जग में।
झेलते कष्ट खुश मन से,गति भी लाते थे पग में।।

दुख जो आए जीवन में,उसे वे दूर करते हैं।
सुख को जल्दी आने को,सदा मजबूर करते हैं।।

जपो मन नाम रामा का,सीता माँ का भी भज लो।
याद कर नाम दोनों का,व दोनों का चरण रज लो।।

   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, April 2, 2023

मुफ्त में सब्जी



मुफ्त में सब्जी

पत्नी बोली सुनो पिया जी!तुमको अकल नहीं है।
मोल-भाव कर सब्जी लेने का,कोई नकल नहीं है।

बिक्रेता जितना दाम बताता है,उतने में तू लेते हो।
अपनी कमाई का मोटा हिस्सा बेकार गवाँं देते हो।

बड़े ही तुम हो सीधे- सादे ,और बड़े हो तुम भोले।
दो रुपए तुम दाम घटाओ,जितना   विक्रेता बोले।

चले पिया जी सब्जी लाने, पाकर पत्नी से शिक्षा।
प्रिया ने जो था पाठ पढ़ाया,देने उसकी परीक्षा।

पत्नी जी की पसन्द की, वे सभी सब्जियाँं लाने।
हर सब्जी के दामों में,लगे दो-दो रुपए घटवाने।

एक बूढ़ी सब्जी वाली, दिखती चेहरे की भोली।
मुट्ठी भर धनिया-पत्ती का, दाम दो रुपए बोली।

पति महोदय हंस बोले,मुफ्त में दो धनिया पत्ती।
 सब्जी वाली के चेहरे पर,साफ दिखी आपत्ति।

आंँखों को नचाकर पूछी,क्या तेरे मुंँह हैं चिकने?
सब्जियांँ दान करने ना रखी, रखी यहां मैं बिकने।

पति महोदय हंँसकर बोले, क्यों गुस्सा करती माई।
दो रुपए दाम घटाने को,प्यारी पत्नी है मुझे सिखाई।

दो रुपए की धनिया पत्ती का, दाम बता क्या होगा?
दो रुपए कम करने पर, यह मुफ्त में ही तो होगा।

सब्जी वाली हँंसकर बोली- सुन मेरा बेटा ! भोला।
उस दिन तुम आकर,यहांँ पर मुफ्त भरना झोला।

जिस दिन सब्जी बेचने बैठेगी,यहाँं तेरी घरवाली।
सब्जियों से भर ले जाना,घर अपना झोला खाली।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'