Wednesday, April 19, 2023

दो बूंद इश्क (विधाता छंद )

दो बूंद इश्क 
भरी कितनी लबालब है,तुम्हारी इश्क की शीशी।
मगर देते नहीं मुझको,कभी दो बुंद परदेसी।

तुम्हारे इश्क में मैंने,जहां अपना लुटाया है।
मुझे जो प्यार करता था,उसे पल में भुलाया है।

उसी का मान रख लेना,नहीं मुझको दगा देना।
मुझे दो बूंद अभी देना,गले अपने लगा लेना।

यही दो बुंद जीवन भर,रहे साथी सदा मन में।
नहीं कोई गिला तुझसे,नहीं शिकवा किसी क्षण में।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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