Saturday, November 30, 2024

हम हैं सभी के

हम हैं सभी के

हम हैं सभी के, सभी हैं हमारे। 
हम सबके प्यारे, सभी हमको प्यारे। 
हम हैं सभी के.......... 
कभी भी किसी से,हम न लडे़गें। 
अच्छाइयाँ सबकी,अंतस में धरेंगे। 
करने में भलाई, भला है हमारा। 
प्रेम से ज्यादा,नहीं कुछ है प्यारा। 
प्रेम से चमकेंगे किस्मत के तारे। 
हम हैं सभी के........ 
देखो ये धरती, हमारी है माता। 
तभी तो हमारा,है भाई का नाता। 
सभी अपने बंधू, सभी अपने भाई। 
आपस में भाई, करो न लड़ाई।
जीना है हमें, एक-दूजे के सहारे
हम हैं सभी के.............. 
हम भाई- भाई जो लड़ते रहेंगे। 
हर पल मुसीबत में पड़ते रहेंगे। 
हमारे मिले से बला भी टलेगी। 
सफलता हमारे संग में चलेगी। 
संग मिलेंगे मंजिल के किनारे। 
हम हैं सभी के............ 
दुश्मन हमारा नहीं होगा कोई। 
जागेगी अपनी किस्मत ये सोयी। 
कभी न घटेगा हमारा ये भुजबल। 
भविष्यत हमारा होगा समुज्जवल।
आओ लगा लें मिल्लत के नारे।
हम हैं सभी के............. 

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, November 29, 2024

शरणागत की रक्षा

शरणागत की रक्षा

शरणागत की रक्षा करना,रीत हमारे देश की। 
अति पुरातन कथा सुनिए,उशीनगर नरेश की। 
शरणागत की.......... 
भरी सभा में सहमा हुआ और बहुत घबराया। 
एक कबूतर उड़ते हुए,शरण शिवि के आया।
गोद में आकर बैठ उनके, कपड़ों में मुँह छुपाया।
एक बाज फिर उड़ते हुए,उसके पीछे आया। 
राजा शिवि समझ न पाये,उसके रूप विशेष को। 
अति पुरातन कथा है......... 
कहा बाज ने यह कबूतर,आज मेरा भोजन है। 
इस कबूतर को क्यों राजन!देते आप शरण हैं? 
कहा शिवि ने- यह कबूतर तुम्हें कभी न दूँगा। 
देकर अपने शरणागत का,प्राण कभी न लूंगा।
शरणागत का प्राण हरना,न्याय नहीं प्रजेश की। 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
कहा बाज ने-यह कबूतर,अगर मुझे न देते ? 
इसे बचाकर मुझ भूखे का,प्राण आप हैं लेते। 
कहा शिवि ने- छोड़ दे, इसकी प्राण बच जाएगी। 
तेरी भूख तो किसी मांस को खाकर मिट जाएगी। 
तो बताओ फिर क्यों न मैं,हर लूँ इसके क्लेश को? 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
कहा वाज ने-मैं तो केवल,पवित्र मांस हूँ खाता। 
किसी प्राणी का पवित्र मांस दें,आप अगर हैं दाता। 
कहा शिवि ने-हर-एक प्राणी,है मेरे अधिन-शरण में। 
किसी प्राणी का प्राण मैं क्यों लूँ,सोचो अपने मन में। 
देता हूँ मैं इसके बराबर,अपने ही अंग विशेष को। 
अति पुरातन सत्य-कथा.......... 
आज्ञा देकर राजा शिवि ने झट एक तुला  मंगाई। 
एक पलड़े पर कबूतर,दूजे पर अपनी काट भुजा चढ़ाई। 
पाँव चढ़ाया,फिर भी कबूतर का पलड़ा टिका भूमि पर। 
खा ले समूचा काटकर मुझको,वे चढ़ बैठे पलड़े पर। 
भरी सभा ने चकित हो देखा,उनके न्याय विशेष को। 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
बाज इंद्र बन और कबूतर अग्निदेव बन हुए प्रकट। 
हाथ जोड़कर राजा शिवि से बोले होकर नतमस्तक। 
हमने तो आपकी धर्म-परीक्षा हेतु यह रुप बनाया। 
बहुत सुना था आज है देखा,आप हैं कितने न्यायी।
कटे अंग को पुनः जोड़,आशीष दिये वे धर्मी नरेश को। 
अति पुरातन सत्य-कथा ........ 
                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 27, 2024

प्रतियोगिता

         प्रतियोगिता 

होड़ लगी जब जंगल में, 
      कौन पहुंचता मंजिल पहले। 
खरगोश दौड़ा तेजी से, 
           कछुआ चला धीरे,-धीरे। 
बहुत ही पीछे है कछुआ, 
             सोंच खरगोश सो गया। 
धीरे धीरे चल कछुआ🐢
             मंजिल तक पहुँच गया।
लगनशील जो होते हैं। 
              सफल सदा ही होते हैं। 

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

लगनशीलता

          लगनशीलता

एक बार घने 🌲जंगल में, 
               हुयी प्रतियोगिता भाई। 
कछुआ🐢और🐇खरगोश ने
                 मिलकर दौड़ लगाई। 
जंगल के लाल🗿पत्थर पर, 
                    जो पहले पहुंचेगा। 
विजेता🏆वह कहलाएगा, 
           सिर पर 👑ताज सजेगा। 
तेजी से दौड़ा खरगोश🐇, 
    कछुआ🐢 की थी धीमी चाल। 
नतमस्तक कछुआ🐢 बेचारा, 
   खरगोश🐰 का था ऊँचा भाल। 
खरगोश को निज तीव्र गति पर, 
               था बहुत ही अभिमान। 
सोचा 🐢कछुआ बहुत दूर है, 
             कर लूँ थोड़ा मैं विश्राम। 
जा सोया वह 🌳पेड़ के नीचे, 
                   मीठी-गहरी नींद में। 
कछुआ चलता रहा निरंतर, 
               पल-पल धीमी गति में। 
नींद खुली फिर खरगोश ने, 
                  तेजी से दौड़ लगाई। 
पत्थर पर देखा पहले से, 
         पहुंचा है कछुआ🐢 भाई। 
तुम भी बच्चों अपने मन से 
                    कभी हार न मानो। 
बढ़ सकते हो सबसे आगे
                     ऐसा मन में ठानो। 
जीवन की चुनौतियों से
                  कभी नहीं घबराओ। 
रखो दृढ़ विशवास हृदय में, 
                    आगे बढ़ते जाओ। 

          सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, November 26, 2024

लालच का फल

लालच का फल

बूढ़ा बाघ  नदी के तट पर। 
   हाथ सोने का कंगन लेकर।। 
      राहगीरों से हँसकर कहता। 
         सोने का  कंकन लेता जा।। 

जीवन-भर मैंने पाप किया है। 
   मार-खाकर, संताप दिया है।। 
      उसी पाप का  फल  मिला है। 
         नख-दंत सब मेरा गल गया है।। 

अब थोड़ा सा पुण्य कमा लूंँ। 
   अपने सिर का पाप मिटा लूँ।। 
     एक  बटोही  लालच में पड़। 
        चल  पड़ा झट  लेने कंगन।। 

कहा बाघ-तू जरा नहा लो। 
   ईश्वर का तो ध्यान लगा लो।। 
     चल पड़ा बटोही नदी नहाने।
         सुबह-सुबह वह कंगन पाने।। 

फँसे पाँव उसके दलदल में। 
   उठा बाघ तब उसको खाने।। 
      फंँसा बटोही भाग न पाया। 
         लालच करने पर पछताया।। 

इसीलिए तो कहते हैं भाई।
   मत कर लालच बुरी-बलाई।। 
     सोंच-समझकर करना काम। 
        लालच में पड़ मत देना जान।। 

                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, November 25, 2024

छोटा मित्र

छोटा मित्र 

एक बाघ ने पकड़ा चूहा, 
    बोला तुझको मैं खाऊँगा।
        चूहा बोला छोड़ दे मुझको, 
            कभी तुम्हारे काम आऊंगा।
            आ दोस्ती कर ले हम-तुम,
        दोनों मिलकर साथ रहेंगे। 
    एक दूजे के काम आएंँगें, 
आपस में हम नहीं लड़ेगे।
हँसकर बोला बाघ नादान, 
    क्या भला तू काम आओगे। 
       छोटे  लोग मित्र नहीं होते, 
           साथ नहीं मेरा दे पाओगे । 
            एक मौका तो देकर देखो, 
          किया चूहे ने नम्र निवेदन। 
    बाघ ने उसको छोड़ दिया, 
बडा़ दुखी कर अपना मन। 
कुछ दिन  ही बीते होगें
   वहाँ एक शिकारी आया। 
       बाघ गुफे से बाहर बैठा था, 
          जाल फेंककर उसे फँसाया। 
             फँस-बधिक जाल में बाघ, 
        खूब रोया और चिल्लाया। 
   रुदन उसका सुनकर तब, 
वह छोटा चूहा दौड़ा आया। 
कुतर- कुतर वह जाल  काटा, 
     बाघ को बंधन मुक्त किया। 
           छोटा होकर भी बाघ को, 
                मित्रता  का सूबूत  दिया। 
               तब बाघ को समझ आया, 
         मित्र छोटे भी हो सकते हैं। 
     बड़ा छोटा का भेद न करना,
   सभी से मैत्री कर सकते हैं। 

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, November 24, 2024

समय (कविता)

                           समय (कविता)

कभी न रुकता,हरदम चलता, चलना इसका काम रे।
पल-पल बढ़ता कभी ना थकता समय बड़ा बलवान रे।
पल-पल बढ़ता.......
समय का घोड़ा दौड़ा करता हवा से करता बात रे।
सुख और दुख के दिन हो चाहे, सर्दी गर्मी बरसात रे।
समय सुबह बनकर है आता,आता बनकर शाम रे।
पल-पल बढ़ता.......
समय साथी है जीवन भर का,जो इसके संग चलता है।
उसके जीवन की बगिया में,मीठा फल हरदम पलता है।
इसकी गति से गति मिला लो,मत कर तू विश्राम रे।।
पल-पल बढ़ता.........
समय का महत्व न देने वाला, जीवन भर पछताता है।
जो करता उपयोग समय का,सुख बहुत वह पाता है।
जो इससे है हाथ हाथ मिलता, करता है उत्थान रे।
पल-पल बढ़ता..........
समय कल था,समय आज है, समय कल भी आएगा।
समय एक अनदेखा पंछी,पंख लगा उड़ जाएगा।
समय भूत है,समय भविष्य है, समय ही है वर्तमान रे।
पल-पल बढ़ता.........
  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 20, 2024

सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (मतगयंद सवैया)

सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (सवैया) 

नाम जपो रघुनाथ भजो सब,तीर चला दस मस्तक छेदे।
काल कराल घमंड मिटाकर,जीत गए लंका गढ़ भेदे।।
पुष्पक बैठ उड़े रघुनंदन,रावण राज विभीषण को दे।
चौदह साल बिताकर वापस,आज पधारे रहे मन मोदे।।

भारत में खुशियाँ भर आबत,आज सभी मिल धूम मचाओ।
देख पधार रहे रघुबर अब,वैर हिया अब तो विसराओ।। 
देख सभी दुख दूर हुआ जन,आज सभी मिल मंगल गाओ। 
जो जन रूठ गये उनको अब,प्यार दिखाकर अंग लगाओ।। 

राम-लखन घर आकर बैठत, गीत बधाब बजे शहनाई।
ढोल बजाय सखा सब नाचत,देबत ताल घनाघन भाई।।
जीव सभी निरभीक भये अब, जीवन आज लगे सुखदाई।
धीर पधार रहा उर में अति,पीर सभी अब भाग-पराई।।

भूल गए सब भोजन-जेबन, भूल गए गृह कारज सारी।
रंग -बिरंग बधाब बजाबत,आज खुशी जग में अति भारी।
फूल बिछाकर राह सजाकर,राह बुहार रहे नर-नारी।
थाल सजाकर हाथ लिए सब,आरती थाल घुमात उतारी।।

दीप जला घर आँगन में सब,आज सभी खुश हो कर भाई। 
राम-सिया घर आज पधारे,नाचत-गाबत देत बधाई।। 
आज यहाँ सबका मन हर्षित,आज अमावस रात मिताई। 
धूम मची चहुँ ओर तभी अब,खाबत हैं सब साथ मिठाई।।
          जय सियाराम 
🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित मौलिक

Friday, November 15, 2024

एकता में बल

एकता में बल

एक दिन एक शिकारी आया। 
जंगल में वह जाल  बिछाया। 
उसके ऊपर वह दाने  डाला। 
छिपकर बैठा  बन रखवाला। 
                   कबूतरों का झुण्ड तब आया। 
                  दाने देखकर  सब ललचाया।
                   कबूतरों का  राजा तब बोला। 
                   बेकार तुम सबका मन डोला। 
जंगल में अन्न कहाँ से आया। 
यहाँ किसी का छल है छाया। 
पर कबूतरों ने  बात न मानी। 
दाना खाये सब  कर नादानी। 
                  बिछे  जाल में  वे फँस चुके थे। 
                  अपराध -भाव से सिर झुके थे। 
                  कपोत राज ने फिर मुंँह खोला। 
                 बड़े प्यार से उन सबको बोला। 
एक साथ  मिल  उड़ चलें हम। 
जाल को लेकर भाग चलें हम। 
मानकर कबूतर राजा की बात। 
पहुंँच गये मुषक दादा के पास। 
                  कपोत  राज ने  कहा- मूषक से। 
                  छुड़ा दो सबको  जाल कुतर के। 
                  मुषक कुतर कर जाल को काटा। 
                  उड़ गए कबूतर कर टाटा-टाटा । 
                        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रितिका छंद

हे पथिक चलते चलो तुम, जिंदगी के रास्ते।
मन कभी विचलित न करना, छोड़ने के वास्ते।

माना पथ मुश्किल बहुत है,पर इसे मत छोड़ना।
मुश्किलों के मुकाबले को,मुख कभी मत मोड़ना।

राह में कण्टक अगर है,रौंद कर बढ़ते चलो।
हौसला रखकर हृदय में, पहाड़ पर चढ़ते चलो।

आहत होकर ठोकरों से,हिम्मत कभी मत हारना।
हर हाल में बढ़ना तुम्हें है,मन में रख लो धारना।

मन के सारे हार होती, मन के हारे ही जीत है।
हिम्मत तुम्हारा संगी-साथी,हिम्मत ही तेरा मीत है।

तुम अगर बढ़ते चले तो,राह स्वयं मिल जाएगी।
हर मुसीबत हौसलों से, राह से टल जाएगी।

                              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, November 14, 2024

अधूरा ज्ञान

अधूरा ज्ञान 

कहा कबूतर,सुन भाई तीतर!
              पास मेरे तुम आओ ना।
कैसे घोंसला बनता है यह,
             मुझको जरा सीखाओ ना।
बोला तीतर सुनो कबूतर।
            तिनके चुन-चुनकर लाओ।
गोल-गोल सा उन्हें घुमाकर,
              एक -दूजे में अटकाओ।
थोड़ा समझकर,कहा कबूतर,
            हाँ-हाँ मैं सब समझ गया।
घोंसला पूरी कर लूंगा मैं,
              समझा आगे होगा क्या।
तिनके तीतर से ले कबूतर,
            लगा घोंसला स्वयं बनाने।
पर घोंसला बना न पाया,
          कहा तीतर को पुनः बताने।
कबूतर ने थोड़ा और बताया,
      कबूतर फिर बोला,समझ गया।
इसी तरह बार-बार पूछता,
          तुरंत कहता मैं समझ गया।
घोंसला बनाने के लिए तीतर ने,
         जब-जब उसको समझाया।
अधूरा ज्ञान पा हाँ कह देता,
         घोंसला कभी न सीख पाया।
कबूतर ही ऐसा पक्षी है जो,
           घोंसला नहीं बना पाता है।
अन्य प्राणियों के निवास में,
              वह जाकर रह जाता है।
जो जन ज्ञान अर्जित करने में,
               चित को नहीं लगाते हैं।
कभी-भी वे अपने जीवन में,
                सफल नहीं हो पाते हैं।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 13, 2024

काला-गोरा

काला-गोरा

एक बार कौआ राजा के,मन में विचार एक आया। 
अपने काले तन पर कौआ,मन-ही -मन झुंझलाया।

सोच-सोच कर हार गया ! पर,हल न कोई सुझा।
राजहंस के पास जा, वह नतमस्तक  हो पूछा।

क्या राज है इसका भैया! तुम गोरा मैं काला।
मुझ पर कोई नजर न डाले,तेरा जपता माला।

सुन , कौए की बात हंस,मंद - मंद  मुस्काया।
 मीठी बोली में बड़े प्यार से,उसको यूं समझाया।

कोई राज नहीं है इसका, मैं गोरा,  तू काला।
रंग के कारण नहीं किसी का,कोई जपता माला।

तन के रंग से कोई प्राणी,भला -  बुरा नहीं होता।
मन के रंग के कारण ही केवल,यश पाता और खोता।

ईश्वर की रचना  है केवल, हर रंगों का प्राणी।
रंगो का तुम भेद भूल कर,बोलो मीठी वाणी।

मीठी बोली से काली कोयल भी, सबको सदा सुहाती।
वाणी की सुंदरता से ही,जग में पहचान बनाती।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, November 11, 2024

बोलो न

ऊँ
           द्वन्द्व 
           में हो
        तुम शायद 
      अहंकार भरा 
     मन यह तुम्हारा 
   मुझे प्रगति -प्रयास 
    के पथ पर चलने 
       की आज्ञा ही
        नहीं दे रहा 
           भय है 
         तुम्हें शायद 
     मेरा साथ छूटने का
या तुम्हारा वर्चस्व टूटने का

    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, November 10, 2024

मैं


               मैं 
              तुम्हें 
            कभी भी 
          बुलंदियों पर 
          चढ़ने से रोक
             तो नहीं 
               पाता 
                 हूंँ।
              किन्तु 
             मुझे सदा 
          यह भय लगा 
        रहता है कि कहीं 
        ऊँची उड़ान भरने 
         हेतु तुम्हारे पर न 
            निकल जाए 
               और तुम 
                  मुझे 
               छोड़कर 
           मुझसे दूर और 
      बहुत दूर न उड़ जाओ।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'