Tuesday, March 15, 2022

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ,गूंज रहा यह नारा है।
किन्तु बेटियों का पिता,बन जाता यहाँ बेचारा है।
अपनी आत्मजा को वह करता तो है दिल से प्यार।
पर ब्याह के समय बेटियाँ,बन जाती सीने पर भार।
दहेज की खातिर घर-बार बेचता,
क्योंकि बोली हारा है।
किन्तु बेटियों का पिता.......
बेटियों को भी पढ़ा-लिखाकर, काबिल वह बनाता है।
फिर भी लड़के वालों के सम्मुख,
निरा मुर्ख कहाता है।
बेटी का पिता है इसीलिए वह फिरता मारा-मारा है।
किन्तु बेटियों का पिता.......
कुछ लोग कहने को दहेज ना लेते, दुनियां में नाम कमाते हैं।
जेवर पार्टी का मोटा खर्चा, बेटी के पिता से करबाते हैं।
आज दहेज का स्वरूप है बदला,खुश जमाना सारा है।
बेटी व्याह के समय पिता दहेज देने में घबराता है।
पर पुत्र के समय दहेज माँग में सुरसा-सा मुंँह बढ़ाता है।
दहेज से कोई विमुख न होता,ना करता निपटारा है।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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