रंगीन स्मरण
एक बार छुटपन में मैं होली में नानी घर में थी। क्योंकि मेरे मामाजी की शादी कुछ ही दिन पहले हुई। नई नवेली मामी घर में थी । इसलिए नानी ने हमलोग को होली में रोक लिया था। हम बच्चों के लिए मस्ती का दिन था। मौसेरी, ममेरी बहनों तथा नयी मामी की छोटी बहन जिन्हें मामी ने रोक लिया था।वह भी हमारी ही उम्र की थी ,के साथ जमकर खेलना और घूमना-फिरना हो रहा था। होली के दो-चार दिन पहले से हमलोग होली खेल रहे थे। होली के दिन तो खुब रंग उढ़ेली एक दूसरे पर।
सामने वाले मामा के दरवाजे पर छोटा-सा हौज था ,जिसमें थोड़ा सा पानी था।वे मामा ने मामी की बहन से कहा इसी पानी में नहा लिजिए। लेकिन शरारत में उन्होंने चुपके से उसमें रंग डाल दिया । जब वह नहायी तो पूरी रंगीन हो गई थी।उनका रंग हमें भी भाया। फिर मैं और मेरी अन्य बहनें आव देखा ,न ताव झट-झट हौज मैं कुद-कुदकर डुबकी लगा लिया।अब हमारे फ्राक सहित हम सभी हरी-हरी दिख रही थीं।
घर से निकलते हुए मेरे मामा की नजर जब अपनी शाली पर पड़ी तो वे खूब मजे ले-लेकर हंसे। और जब हमारी मांँ-मौसी की नजरें हम सभी पर पड़ी तो क्षणिक गुस्से से ज्यादा वे सभी हंस-हंसकर लोट-पोट हो गई। फिर पूरे मुहल्ले के लिए हम हंसी के पात्र हो गये। रंग इतना चोखा था कि हमारा रंग उगरने में पूरा सप्ताह लग गया। मामा की रंगीन शाली तो पहले चली गई। एक-दो दिन में हमारा रंग कुछ फीका पड़ा तो हम भी अपने-अपने चल दिए हमारे घर लौटने पर सभी जगह बस हमारी ही परिचर्चा होती। सभी खूब हंसते और उस रंगीन स्मरण में मैं आज भी जी भरकर हंसती हूंँ।❤️❤️😀😀🙏🙏
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सत्य एवं स्वरचित
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