Sunday, March 20, 2022

कहां गयी तुम ओ गौरैया

कहाँ गई तुम ओ गौरैया

एक जमाना बीता जब
मेरे कमरे के रोशनदान पर,
खर-पतवार के तिनके
दवा चोंच में लाती थी तू गौरैया।
एक-दूजे में उलझा-उलझाकर
थोड़ा उसमें फँसा-फँसाकर,
घोंसला अपना बनाती थी तू गौरैया।
रह-रहकर तुम्हारे नव-जनमें बच्चे,
मधुर कलरव जिसमें करते थे।
मेरे हृदय में मधुरस घोल
नव जीवन वे भरते थे।
चीं-चीं की कोमल संगीत,
सुनाई पड़ता था कानों में।
मन के तार झंकृत हो उठते थे,
उनके मधुर-मीठे गानों में।
उनके कोमल,लाल चोंच में,
तुम दानों के कण भरती थी।
निज शिशुओं की भूख मिटाकर,
अंतर की पीड़ा हरती थी।
चलचित्र-सा देखा करती थी,
पुलकित मन से मैं वह दृश्य।
माता की ममता की महिमा,
कैसी सुंदर उपहार सदृश्य।
आज न दिखती हो तुम गौरैया,
न श्रवण ही होता तुम सबका गाना।
रोशनदान घोंसले बिन सूना है ,
कौन छेड़ेगा वह प्रेम-तराना।
हाय कहाँ तू गई गौरैया,
बना बसेरा आसमान में।
नीले-नभ की सीमा पाने,
या पर फैलाने नील -वितान में।
                    सुजाता प्रिय

5 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (21 मार्च 2022 ) को 'गौरैया का गाँव में, पड़ने लगा अकाल' (चर्चा अंक 4375 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. प्रिय सुजाता जी , चिड़िया की ये गतिविधियाँ हमारी पीढ़ी ने खूब देखि | वाही यादें अक्सर दस्तक देती हैं | चिड़िया जान गयी मानव की कुटिलता | अब कहीं दूर सुरक्षित वनस्पतियोँ में डेरा लगा लिया उसने | संवेदनशील रचना |

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  3. लौट आएगी एक दिन ।
    यदि किया प्रयास ।

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  4. उम्मीद तो यही है कि गौरैया हमारे आंगन में निडर होकर दाना चुगने आएगी

    बहुत सुंदर और अच्छी रचना
    बधाई

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  5. सुंदर हृदय स्पर्शी रचना।

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