शिव नचारी ,मगही भाषा
हमर शिवजी के रूप है निराला।
फिर भी हथिन इस जग रखवाला।
सब देवन के सिर में सोने मुकुटबा,
हमर शिव जी के जटा में चंदा
फिर भी हथिनी इ.................
सब देवन के गला में सोना के हरबा,
हमर शिवजी के साँप के माला।
फिर भी हथिनी इ..........
सब देवन के अंग में साल -दुशाला,
हमर शिवजी के बाघ के छाला।
फिर भी हथिन इ..............
सब देवन पियथिन दूध और सरबत,
हमर शिवजी पियथिन विष प्याला।
फिर भी हथिनी इ..........
सब देवन खाथिन फल ओ मेवा,
हमर शिवजी खाथिन भांग हाला।
फिर हथिनी इ..............
सब देवन सुनथिन मृदंग और वीणा,
हमर शिवजी हथिनी डमरू वाला।
फिर भी हथिनी इ................
सब देवन के हाथी-घोड़ा सवारी,
हमर शिवजी हथिनी बैल वाला
फिर भी हथिनी इ............
सब देवन के है कोठा-अटारी,
हमर शिवजी के मैड़ैया न ताला।
फिर भी हथिनी इ...........
सब देवन करथिन स्वर्ग में विचरण,
हमर शिवजी घुमथिन मतवाला।
फिर भी हथिनी इ......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सुंदर।
ReplyDeleteधरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (06 मार्च 2022 ) को 'ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे' (चर्चा अंक 4361) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteआदरणीया सुजाता प्रिये जी, अपने के मगही के रचना बहुत निमन हे। कही - कहीं हथिन के हथिनी लिखा गेलइ हे। अपने मगही में और रचना लिखूँ। साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
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