Sunday, October 31, 2021

दीप (हाइकु )



दिवाली आयी
दीपों की देखो यह
बाराती लायी।

दीप जले हैं
घर आंगन तक
उजियारा है।

पंक्तियां बद्ध
जगमग करते
तम हरते।

माटी का दीया
कुछ लोगों को देता
रोजी औ रोटी।

बाती जलती
प्रकाशित करती
घर का कोना।

तेल में भींगी
बाती के जलने से
स्वच्छता आती।

अंधेरा भागा
दीपों को देखकर
घबराया-सा।

आओ मिलकर
संकल्प करें हम
तम भगाएं।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
   स्वरचित, मौलिक

10 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (01 -11-2021 ) को 'कभी तो लगेगी लाटरी तेरी भी' ( चर्चा अंक 4234 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. जी सुप्रभात!सादर धन्यवाद भाई ! मेरी रचना को चर्चा अंक में साझा करने के लिए।

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 02 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार दीदी जी !

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  4. सादर धन्यवाद सखी !

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  5. हार्दिक आभार सर।

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  6. वाह! मधुर और मनोरम हाइकु प्रिय सुजाता जी 👌👌👌🌷🌷🌷🌷🙏

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  7. हार्दिक धन्यवाद सखी।

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