वक्त को साथी बनाना सीख लो।
साथ उसका तू निभाना सीख लो।
वक्त के संग चलना तुम्हें है सदा-
कदम उससे तू मिलाना सीख लो।
राह अपना तुम बनाना सीख लो।
पग उसपर तुम बढ़ाना सीख लो।
अगर राहों के कंटक पग में गड़े-
पुष्प उसपर तू बिछाना सीख लो।
वक्त को तू आजमाना सीख लो।
भरोसा मन को दिलाना सीख लो।
वक्त ने जो दिए हैं ये जख्म तुझे-
उसमें मरहम तू लगाना सीख लो।
मन को तुम समझाना सीखो लो।
सबके दिल में समाना सीख लो।
कोई तुमको न देखे फिकर ना करो-
खुद को खुद पर रिझाना सीख लो।
तुम भी करना बहाना सीख लो।
रूठों को तुम मनाना सीख लो।
कोई जलता है अगर तुझे देखकर-
दिल उसका जलाना सीखो लो।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (23 -10-2021 ) को करवाचौथ सुहाग का, होता पावन पर्व (चर्चा अंक4226) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी आभार भाई !मेरी प्रविष्टि के लिंक की चर्चा, शनिवार चर्चा अंक में करने के लिए।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद भाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ❤️
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