चलनी की आड़ से साजन का,
दीदार प्यारा लगता है।
जब-जब भी पड़े साजन पर नजर,
संसार प्यारा लगता है।
जब-जब भी पड़े साजन.......
माथे पर सजा सिंदूर-बिदिया रहे।
हाथों में खनकाती ये चुड़ियां रहे।
हाथों में मेहंदी की ये लरियां रहे।
पांवों में झनकती ये बिछिया रहे।
लाल चुनरी अंग शोभे,हो-हो-हो
गले में यह लाल मोतियों का,
हार प्यारा लगता है।
जब-जब भी पड़े साजन ......
जब तलक आसमां में ये चांद रहे,
तब तलक मेरा-तेरा ये साथ रहे।
संग- संग गुजरता दिन -रात रहे।
सदा ही अचल मेरा अहिवात रहे।
बढ़ते रहें हम -तुम संग सनम,हो-हो-हो
तुम मेरे संग रहो तो मेरा,
घर-बार प्यारा लगता है।
जब-जब भी पड़े साजन.........
हर जनम में रहे हम साथ सनम।
आ मिलकर खा लें आज कसम।
आज दिल का मिटा ले सारे भरम।
एक-दूजे से कभी ना बिछड़ेगे हम।
दिल ये कहे आज सनम,हो-हो-हो,
आज शुभ दिन में साजन का,
प्यार प्यारा लगता है।
जब-जब भी पड़े साजन............
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25 -10-2021 ) को करवाचौथ सुहाग का, होता पावन पर्व (चर्चा अंक 4226) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी सादर धन्यवाद भाई ❤️ बहुत-बहुत आभार।
ReplyDeleteलेकिन यह रचना किस भी चर्चा अंक में नहीं दिखी।
ReplyDeleteMUAAF KEEJIYE PRASTUTI ABHI PRAKASHIT HO SAKI HAI.ASUVIDHA KE LIYE KHED HAI.
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सखी ❤️😀
ReplyDeleteआदरणीया सुजाता जी, करवा चौथ में पति पत्नी के अटूट बंधन को रेखांकित करती अनुपम लयात्मक रचना। --ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteजी सादर आभार एवं नमस्कार भाई जी।
Deleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
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