Friday, March 27, 2020

काजल

अखियों में काजल भर,
मुझको जादू न कर ,बृजबाला !
तेरा काजल है मतवाला।
यह गोकुल नगर,
जिसमें है मेरा घर,गुणवाला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।

काले-मेघों से काजल चुराकर।
तूने अखियों में रख ली बसाकर।
अब मुझे न चुरा,
मुझको दिल में बसा,सुरबाला!
मै हूँ मोहन बाँसुरीवाला।

तेरे काजल में जादू भरी है।
इसलिए मेरी अखियाँ ड़ी है।
मुझको घायल न कर,
अपने कायल न कर,हे बाला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।

तेरी अखियों का काजल निराला।
तेरे नैना है मदिरा का प्याला।
मुझको करे बेखबर,
कुछ न आता नजर,मधुवाला!
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।

अपने नैनों में काजल न डालो।
मृगनयनी तू मुझको बसा लो।
तुझको लगता है डर,
मुझसे ऐ हमफर,मैं हूँ काला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
            सुजाता प्रिय

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ३० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद पर साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद स्वेता।

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  3. वाह!!सखी सुजाता जी ,बहुत सुंदर !

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।

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  4. वाह !! बहुत सुंदर, राधा मोहन के प्रीत बिखेरती सुंदर रचना सखी ,सादर नमन

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  5. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।

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