मुझे याद है,
वह सुनहरी शाम।
गुनगुना रहे थे तुम,
लेकर मेरा नाम।
वह रूपहली
वाटिका के मेड़ पर।
खड़े थे तुम
वसंत-मालती के
वेल पकड़।
ओट ले,
पेड़ों की
झुरमुट्टों की।
दबे पाँव मैं
तुम तक थी पहुँची।
जाने किन
स्वप्नों में थे तुम लीन।
शायद थी मैं
तेरे अहसासों में विलीन।
चुपचाप खड़ी रही
मैं तेरे पीछे।
मौन खड़े रहे
तुम भी अखियाँ मींचे।
रोकना मुश्किल था
मिलन का वह
उतावलापन।
भावों के भँवर में
गोते लगाता
वह बेकरार मन।
कितने प्यारे थे
वे अभिसार के पल।
दिल तेरा बेचैन
और
मन मेरा विकल।
साक्षी है,
वह थका- मांदा,
अलसाया सूरज।
मेरे विकल मन में,
तेरे भींचे नयन में ।
वसी थी किसकी सूरत।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 09 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद।
ReplyDeleteवाह सखी बहुत सुंदर!
ReplyDeleteसंयोग शृंगार की बहुत मनभावन रचना।
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह सखी !!अनुराग और अभिसार के ये पल बहुत प्यारे हैं 👌👌👌👌🌹🌹💐💐🌹💐💐🌹💐💐🌹🌹
ReplyDeleteधन्यबाद सखी।
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