Saturday, March 21, 2020

साँसों का मोल

साँसों का मोल समझ ले प्राणि,
क्यों समझ न इसको पाए रे।
हर साँस अनमोल हमारा,
जो पल-पल घटता जाए रे।

साँसों से ही वायु पीकर,
यह जीवन जीते जाते हम।
साँस-संवारण वायु को फिर,
क्यों ना हैं शुद्ध बनाते हम।
साँस हवा के झोंके में है,
अब कौन इसे समझाए रे।

सबको साँस दिया विधाता,
साँस सभी को लेने दे।
जन्मसिद्ध अधिकार सभी का,
हक न किसी को खोने दे।
साँसों के सरगम पर प्राणि,
जीवन के गाने गाए रे।

जब-तक साँस है शरीर में,
तब-तक आस लगाना है।
प्रत्येक साँस में लक्ष्य हमारा,
पग-पग बढ़ते जाना है।
साँस एक अनदेखा पंछी,
पंख लगा उड़ जाए रे।
सुजाता प्रिय
21.03.2020

12 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२२-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१३"साँस"( चर्चाअंक -३६४८) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

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    1. मेरी रचना को चर्चा अंक में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।

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  2. सार्थक चिंतन देता यथार्थ लेखन सखी बहुत सुंदर।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. वाह!!!
    सुन्दर एवं सार्थक सृजन।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।

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  5. साँसों का मोल समझ ले प्राणी
    क्यों समझ न इसको पाए रे।
    हर साँस अनमोल हमारा,
    जो पल-पल घटता जाए रे।
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति सखी 👌👌👌👌

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    1. सादर धन्यबाद सखी।

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  6. चिंतनपरक ,बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सखी ,सादर नमन

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  7. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।नमन

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