मॉनसून
बीता मौसम गर्मी का,
मॉनसून ने ली अंगड़ाई।
धूमिल हैं सूरज की किरणें,
आसमान में बदली छाई ।
आषाढ़ माह है बीत रहा,
लेकिन यह बात अनूठी है।
नभ के मेघ नहीं बरसते,
क्या वर्षा रानी रूठी है?
पेड़ों के काटे जाने से,
हरियाली है छट रही।
मॉनसून का मन है सूना,
जलवृष्टि भी घट रही।
धरती माँ के आचल मैं,
बीजों के टाक सितारें हम।
लता तथा पेड़ों से मढ़ दें,
बेल - बूटे प्यारे हम।
दमक उठेगा माँ का दामन,
वृक्षों की हरियाली से ।
हम सबको भी प्यार मिलेगा,
उन तरुवरों की डाली से ।
सुजाता प्रिय
वाह!बहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी धन्यबाद।सादर
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह बहुत खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteधन्यबाद बहन।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद बहन
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