Saturday, April 22, 2023

आधुनिक भारत की शादियांँ

आधुनिक भारत की शादियांँ

शादी एक ऐसा पवित्र और अटूट बंधन है,जो दो लोगों को जोड़ता है,दो परिवारों को मिलाता है,शादी के बाद दो अनजाने लोग साथ- साथ एक अटूट बंधन में बंध कर रहते हैं, साथ-साथ जीते हैं, साथ-साथ खाते-पीते हैं,घर बसाते हैं,परिवार बढ़ाते हैं,रिश्ते निभाते हैं ।ना सिर्फ जीने-मरने की कसमें खाते हैं बल्कि एक- दूसरे की तथा उनके रिश्तेदारों- परिवारों की मान मर्यादा का ख्याल रखते हैं,एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हैं ।आदि काल से ही शादी में कन्यादान के समय कन्या पक्ष के लोग स्वेच्छा से कुछ वस्तुएँ, द्रव्य,बर्तन ,कपड़े आभूषण ,जमीन उपयोग में आने वाले अन्य प्रसाधन इत्यादि कन्या को दान में देते थे। यथा योग्य बारातियों का स्वागत-सत्कार भोजन-आवासन,वस्त्र-आभूषण इत्यादि भेंट स्वरूप देकर विदा करते थे।कालांतर में इन सभी आवश्यक सामानों को सूचीबद्ध कर कन्या पक्ष से इनकी मांँग की जाने लगी।जिसे दान की जगह दहेज के नाम से जाना जाने लगा। फिर दहेज-मांँग की प्रथा का विस्तार सुरसा के मुँह की तरह होने लगा।लोग घर की जरूरत के सभी बेशकीमती सामानों की मांँग करने लगे । लोगों की सोच तो इतनी गिर गई कि वर पक्ष के लोग अपनी बेटियों को दहेज में देने वाले सामानों को भी बड़ी बेशर्मी से मांँग कर लेते हैं। दहेज में कुछ उन्नीस-बीस होने पर बहू को प्रताड़ित करना, अवहेलना करना,यहाँ तक कि जलाकर या किसी अन्य विधि से मार देना इत्यादि भी आज लोगों के लिए आम बात हो गई ।
आधुनिक युग में दहेज के स्वरूप में थोड़ा बदलाव आया । लड़की के माता-पिता के मन में कन्या के विवाह का विचार आते ही वैवाहिक संगठनों के एडमिन का फोन आने लगता है। आंटी आप दीदी की शादी करना चाहती हैं तो मुझे फोटो-बायोडाटा भेजिए।उसके अनुसार मैं लड़के का विवरण भेजूंगी। फिर वह कुछेक  अच्छे लड़के का फोटो दिखाकर पंजीकरण के नाम पर थोक राशि जो हजारों में होती हैं।उसे जमा करने की मांग करने लगते हैं।और पंजीयन की उक्त राशि भेजते ही फोन उठाना बंद कर देते या फिर दूसरे नम्बर और नाम से फिर फोन कर पैसे ठगने का प्रयास करते हैं।इस तरह के  अनेक वैवाहिक समुह कुकुरमुत्ते की तरह उत्पन्न हो अपना मकड़जाल  फैलाकर कन्या पक्ष को जोड़े लगवाने की गारंटी देते हुए धन ऐंठने के प्रयास करते हैं । यहाँ उबर गए और किसी तरह शादी की बात पक्की हो गई तो फिर दहेज नहीं के नाम पर अलग ड्रामा। चुकी आज लड़कियांँ भी जागरूक हो गई पढ़ लिखकर लड़कों के कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगी।स्वयं अर्थोपार्जन कर घर गृहस्थी चलाने में आर्थिक सहभागिता निभाने लगीं।तो लड़के वालों के विचारों में कुछ  परिवर्तन हुआ । दहेज क्या लेना ? क्यों लेना ? कामकाजी बहू को लाने के समय वह दहेज की मांग नहीं करते हैं किंतु शादी में होने वाले सारे खर्चों को एन-केन- प्रकारेण कन्या पक्ष के कंधों पर ही डाल देते हैं ।जैसे -लड़की के वस्त्र आभूषण और सिंगार सामान तथा उपयोग में लाने वाली सभी वस्तुओं को कन्या पक्ष को ही देना होता है स्वयं बारात जाने के झंझट से बचने के लिए कन्या पक्ष को ही अपने नगर में बुलाकर विवाह करने को मजबूर करना, जिसमें विवाह स्थल भी उन्हीं के द्वारा चयनित होता है ।जो कि उनके निवास के निकट होता है। विवाह स्थल की साज -सज्जा एवं महंगी भोज्य-पदार्थ जो प्लेट- सिस्टम पर आधारित होता है और जिसके कीमत हजारों में होती है। जिसमें कुछ ऐसे प्रकार के व्यंजन भी शामिल होते हैं जिसे सभी लोग नापसंद करते हैं और वह नाहक बर्बाद ही होता है लेकिन व्यंजन की गिनती पूरी करने के लिए रखे जाते हैं ।या फिर आप जितना भी कम खाएँ प्लेट उठाने के दाम लगते हैं।
वर पक्ष द्वारा चालाकी होती है वह अपने इस वैवाहिक पार्टी यानी बहू भोज ( बहू को को आने पर दिए जाने वाले भोज )को भी उनमें शामिल करते हैं क्योंकि खर्च तो कन्या पक्ष की ओर से होता है । इसलिए ऐरे-गैरों को भी उस पार्टी में आमंत्रित कर लेते हैं।बेचारा कन्या पक्ष का पिता 'मरता क्या न करता' की स्थिति में ठगी का शिकार होता है। क्योंकि बारात सैकड़ों में नहीं हजारों में आती है। कुछ राही-बटोही और अनजाने लोग भी भोजन का आनन्द लेते हैं।कौई पहचानने वाला तो होता नहीं है कि वे किस पक्ष से हैं। प्लेट सिस्टम में ज्यादा खर्च होगा यह सोच अन्य के पिता गिने-चुने लोगों को ही आमंत्रित करते हैं। किंतु.........इधर दूल्हे- दुल्हन को सजाने का काम एक ही पार्लर में होता है तथा यहाँ आने वाले लाखों रुपए भी कन्या पक्ष को देय होता है । मिला-जुलाकर आज की शादियों में आजादी से बर्बादी की जाती है।जिसका लाभ वर-कन्या तथा उसके परिवार से ज्यादा दूसरे लोग उठाते।
 आधुनिक रीति- रिवाजों के चक्कर में हम अपनी पारम्परिक रीति रिवाजों को भी भूल जाते हैं। आवश्यकता से अधिक हम दिखावे में धन लुटाते हैं ।
              सुजाता प्रिय समृद्धि
                  रांँची, झारखण्ड

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