कभी ग़म भुलाने को,तू दारू न पीना।
दिल को जलाकर तू घुट-घुट न जीना।
कभी ग़म भुलाने को.............
ग़म का भुलावा तो, है इक बहाना।
इसके बहाने ना तुम,गले गम लगाना।
मदिरा को अपना तू,मानो कभी ना।
कभी ग़म भुलाने को.............
माना के वह तेरे, मन में बसी है।
कोई सुंदरी से भी,ज्यादा हसीं है।
सजनी से ज्यादा,ना होगी हसीना।
कभी ग़म भुलाने को.............
नाहक हो अपने,तू तन को जलाते।
खुद पीते हो और दूसरे को पिलाते।
इसी के लिए क्या बहाते हो पसीना।
कभी ग़म भुलाने को.............
सुनो तुम यह दारू, है जानलेवा।
नशेबाजों को यह लगती है मेवा।
हाथ लगे तो,यह लगता नगीना।
कभी ग़म भुलाने को..........
नशा करना है,मानसिक बीमारी।
इसकी चपेट में , है दुनिया सारी।
लाइलाज है ठीक होता कभी ना।
कभी गम भुलाने को...........
सुजाता प्रिय समृद्धि
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